एक ही आरोप में दोहरी सज़ा पर रोक

सरकारी कर्मचारियों के लिए न्याय का प्रतीक
नागपुर.
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ का एक फैसला सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक मील का पत्थर है। यह फैसला स्पष्ट करता है कि किसी कर्मचारी को एक ही आरोप में दो बार सज़ा नहीं दी जा सकती। यह निर्णय न्याय के मूल सिद्धांतों को पुष्ट करता है, विशेष रूप से ‘डबल जियोपर्डी’ के सिद्धांत को, जो यह सुनिश्चित करता है कि एक बार बरी या दंडित होने के बाद, किसी व्यक्ति को उसी अपराध के लिए फिर से मुक़दमा नहीं चलाया जा सकता।

यह है मामला
वर्धा जिले के एक शिक्षक राजेश ठाकुर को आईपीसी और आईटी एक्ट के तहत लगे आरोपों से ट्रायल कोर्ट ने बरी कर दिया था। इसके बावजूद, जिला परिषद ने उन्हें बर्खास्त कर दिया। जब विभागीय आयुक्त ने बर्खास्तगी रद्द करके बहाली का आदेश दिया, तो जिला परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने फिर से उसी आरोप में उनकी तीन वेतन वृद्धियां रोक दीं। यह कार्रवाई न केवल अनुचित थी बल्कि कानून का उल्लंघन भी थी।

अदालत ने यह कहा
न्यायालय ने कहा कि जब एक उच्च प्राधिकारी (आयुक्त) ने बर्खास्तगी रद्द कर दी और कर्मचारी को बहाल कर दिया, तो निचले प्राधिकारी (सीईओ) के पास दोबारा सज़ा देने का कोई अधिकार नहीं था। यह फैसला प्रशासन में मनमानी और शक्ति के दुरुपयोग पर रोक लगाता है। यह सुनिश्चित करता है कि अधिकारी अपनी शक्तियों का उपयोग कानून के दायरे में रहकर करें, न कि अपनी व्यक्तिगत इच्छाओं के अनुसार। इस तरह के फैसले सरकारी कर्मचारियों के लिए सुरक्षा कवच का काम करते हैं, जिससे उन्हें बिना किसी डर के अपना काम करने का प्रोत्साहन मिलता है। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि न्यायपालिका, कार्यपालिका के मनमाने फैसलों की जाँच करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। यह मामला सभी सरकारी विभागों के लिए एक सबक है कि वे कर्मचारियों के साथ न्यायपूर्ण और कानूनी रूप से सही व्यवहार करें।

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