Category: महाराष्ट्र

  • बिहार चुनाव लड़ने की अफवाहों पर अक्षरा सिंह ने लगाया विराम

    बिहार चुनाव लड़ने की अफवाहों पर अक्षरा सिंह ने लगाया विराम

    बोलीं- आप सभी का साथ चाहिए, अभी फैसला बाकी है
    मुंबई.
    बिहार विधानसभा चुनाव अक्टूबर या नवंबर 2025 में होने वाले हैं। इसे लेकर सुगबुगाहट तेज हो गई है। इसी बीच अक्षरा सिंह का नाम भी सामने आ रहा है कि वह बिहार चुनाव में किस्मत आजमां सकती हैं। दरअसल, अक्षरा सिंह की राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के साथ कुछ तस्वीरें सामने आई और वह इवेंट्स में मौजूद रही थीं जिसके बाद इन चर्चाओं को हवा मिली। अब अक्षरा सिंह ने आखिरकार अपनी चुप्पी तोड़ दी है।

    साथ देने की अपील
    अक्षरा सिंह से जब पूछा गया कि क्या वह बिहार चुनाव लड़ेंगी? उन्होंने कहा, ”जब चुनाव लड़ूंगी, तो आप सभी को खुद बुलाकर बताऊंगी, लेकिन अभी ऐसी कोई प्लानिंग नहीं है। मैं जो काम कर रही हूं, उसी को पूरे चाव से करना चाहती हूं। जिसमें आप सभी का साथ चाहिए। अक्षरा सिंह ने कहा, “मेरा किसी राजनीतिक दल से कोई जुड़ाव नहीं है। मैं आज भी किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़ी नहीं हूं। पहले भी कहा था कि अच्छी सोच के साथ कुछ जगह गई थी और आगे भी जब जरूरत होगी, तो उस सोच के साथ हमेशा खड़ी रहूंगी, लेकिन, चुनाव से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।”

    नई फिल्म हुई रिलीज
    अक्षरा सिंह ने आगे बिहार में 125 यूनिट फ्री बिजली पर भी बात की। उन्होंने कहा, “ये बहुत बड़ी और कमाल की बात है। यहां के लोगों के लिए सरकार की ये सोच तारीफ-ए-काबिल है। हम उम्मीद करते हैं कि बिहार और ज्यादा कामयाब हो और डेवलपमेंट की नई ऊंचाइयों तक पहुंचे। अक्षरा सिंह के वर्कफ्रंट की बात करें तो वह इन दिनों अपनी आने वाली नई फिल्म ‘रुद्र शक्ति’ के प्रमोशन में बिजी हैं। फिल्म ‘रुद्र शक्ति’ आज यानी 18 जुलाई को सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है।

  • नाशिक में कार- बाइक भिड़ंत, 7 की मौत

    नाशिक में कार- बाइक भिड़ंत, 7 की मौत

    2 अन्य गंभीर रूप से घायल
    मुंबई.
    महाराष्ट्र के नाशिक में एक भीषण सड़क हादसा सामने आया है, जहां कार और बाइक की टक्कर में 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए। पुलिस ने गुरुवार को इस हादसे की जानकारी दी। यह घटना नासिक के डिंडोरी रोड पर स्थित वाणी के पास बुधवार देर रात करीब 12 बजे हुई। पुलिस के अनुसार, यह हादसा कार और बाइक की टक्कर के कारण हुआ, जिसके बाद दोनों वाहन सड़क किनारे एक छोटी नहर में जा गिरे। इस सड़क दुर्घटना में 7 लोगों की मौत हो गई, जबकि 2 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।

    मृतकों की पहचान
    जानकारी के अनुसार, मृतकों में 3 महिलाएं, 3 पुरुष और 2 साल का एक बच्चा शामिल है। मृतकों की पहचान देविदास पंडित गांगुर्डे (28), मनीषा देविदास गांगुर्डे (23), उत्तम एकनाथ जाधव (42), अल्का उत्तम जाधव (38), दत्तात्रेय नामदेव वाघमारे (45), अनुसया दत्तात्रेय वाघमारे (40), और भावेश देविदास गांगुर्डे (2) के रूप में हुई है। सभी सात लोगों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी।

    देर रात में हुआ हादसा
    नाशिक के पुलिस अधीक्षक (SP) के मुताबिक, ये हादसा देर रात 12 बजे के करीब वाणी-डिंडोरी रोड पर हुआ। जब पुलिस मौके पर पहुंची तो दोनों वाहन सड़क के किनारे एक छोटी सी नहर में गिरे हुए मिले। पुलिस ने नहर से शवों को बाहर निकाला और कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा। साथ ही हादसे में घायल हुए दोनों लोगों को गंभीर हालत में नजदीकी अस्पताल में भर्ती कराया है।

    इससे पहले भी हुआ हादसा
    फिलहाल घटना की जांच जारी है और पुलिस हादसे के कारणों का पता लगाने में जुटी है। इससे पहले, 19 जून को महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित जेजुरी मोरगांव रोड पर एक कार और पिकअप ट्रक के बीच जोरदार टक्कर हो गई थी। इस भीषण हादसे में एक महिला समेत आठ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई थी।

  • पत्नी को गुजारा भत्ता देने बन गया चेन स्नैचर

    पत्नी को गुजारा भत्ता देने बन गया चेन स्नैचर

    विवशता बनी अपराध का बहाना
    नागपुर.
    नागपुर में एक व्यक्ति का पत्नी को गुजारा भत्ता देने और घर खर्च चलाने की “विवशता” में चेन स्नैचर बन जाना, समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करता है। यह घटना, जिसमें कन्हैया नारायण बौराशी नामक शख्स ने अपराध का रास्ता अपनाया और पुलिस ने उसे रंगे हाथों पकड़ा, एक दुखद सच्चाई को सामने लाती है: अपराध आखिर अपराध है, और कोई भी विवशता उसे जायज नहीं ठहरा सकती।

    दुकानदार को भी पकड़ा गया
    कन्हैया बौराशी, जो लगभग दो साल से बेरोजगार था, ने अपनी आर्थिक तंगी और पत्नी को गुजारा भत्ता देने की मजबूरी को अपराध का औचित्य बना लिया। उसने जयश्री जयकुमार गाडे जैसी बुजुर्ग महिला के गले से दिनदहाड़े गहने छीनने जैसे जघन्य कृत्य किए। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और ठोस जांच के दम पर कन्हैया को धर-दबोचा, और फिर उससे चोरी का माल खरीदने वाले सराफा दुकानदार अमरदीप कृष्णराव नखाते को भी गिरफ्तार किया। यह कार्रवाई सराहनीय है और दिखाती है कि पुलिस अपराधियों तक पहुंचने में सक्षम है। कुल ₹1,85,500 का माल जब्त किया गया है, जिसमें 10.940 ग्राम सोने के गहने शामिल हैं, और पुलिस ने 5 चेन स्नैचिंग के मामलों का खुलासा किया है।

    “विवशता” अपराध की गंभीरता कम नहीं करती
    यह सच है कि बेरोजगारी और आर्थिक संकट व्यक्तिगत जीवन में भारी दबाव डालते हैं। गुजारा भत्ता जैसी कानूनी बाध्यताएँ भी आर्थिक बोझ बढ़ा सकती हैं। लेकिन, किसी भी परिस्थिति में कानून तोड़ना और निर्दोष नागरिकों को नुकसान पहुँचाना स्वीकार्य नहीं है। कन्हैया का मामला इस बात पर जोर देता है कि समाज और सरकार दोनों को उन कारणों पर ध्यान देना चाहिए जो व्यक्तियों को अपराध की ओर धकेलते हैं, जैसे कि बेरोजगारी, गरीबी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं। हालांकि, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि अपराध की कोई भी “विवशता” उसकी गंभीरता को कम नहीं करती।

    यह घटना एक संदेश है
    आपराधिक कृत्यों के लिए कोई बहाना नहीं होता। समाज को उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षित विकल्प और समर्थन प्रणालियाँ विकसित करनी होंगी जो आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, ताकि कोई भी विवशता के नाम पर अपराध का रास्ता न चुने। साथ ही, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे मामलों में तेजी से और दृढ़ता से कार्रवाई करनी चाहिए ताकि यह संदेश स्पष्ट हो कि कानून तोड़ने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे उनकी “विवशता” कोई भी रही हो।

  • राजधानी से उपराजधानी पहुंचा भाषा विवाद

    राजधानी से उपराजधानी पहुंचा भाषा विवाद

    नागपुर में मनसे कार्यकर्ता गुस्से में
    नागपुर.
    नागपुर में यूनियन बैंक की फ्रेंड्स कॉलोनी शाखा के सामने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) कार्यकर्ताओं का विरोध प्रदर्शन और बैंक पर कालिख पोतने की घटना, भाषाई अस्मिता और उपभोक्ता अधिकारों के बीच बढ़ते टकराव को दर्शाती है। यह घटना केवल नागपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे महाराष्ट्र में स्थानीय भाषा के सम्मान और केंद्रीय संस्थानों के रवैये से जुड़े एक बड़े मुद्दे को उठाती है।

    बैंक का सफाई
    मामला एक सड़क दुर्घटना में मृत युवक योगेश बोपचे के बीमा क्लेम से जुड़ा है। बैंक ने दावा किया कि चूँकि बीमा कंपनी का मुख्यालय कोलकाता में है, इसलिए मराठी एफआईआर के हिंदी या अंग्रेजी अनुवाद की आवश्यकता थी। बैंक मैनेजर हर्षल जुननकर के अनुसार, कोलकाता के अधिकारियों को मराठी समझ में नहीं आती, और बीमा कंपनी केवल इन्हीं भाषाओं में दस्तावेज स्वीकार करती है। यह तर्क कुछ हद तक तकनीकी लग सकता है, लेकिन इसने मराठी भाषी उपभोक्ताओं के बीच गहरी नाराजगी पैदा की है, खासकर तब जब बैंक ने स्पष्ट किया कि अन्य मामलों में मराठी एफआईआर स्वीकार की जाती है।

    बैंक पर कालिख पोत दिया
    मनसे का आंदोलन, जिसमें लगभग 50 कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया, महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दलों की भाषा और अस्मिता की राजनीति का एक क्लासिक उदाहरण है। बैंक पर कालिख पोतना भले ही एक उग्र तरीका हो, लेकिन यह उस गुस्से को दर्शाता है, जो लोगों में तब पनपता है जब उन्हें लगता है कि उनकी अपनी भाषा का सम्मान नहीं किया जा रहा है या उन्हें बेवजह परेशान किया जा रहा है।

    माफी के बाद भी सवाल
    हालांकि बैंक ने बाद में माफी मांग ली और मनसे ने आंदोलन वापस ले लिया, यह घटना कई महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है। क्या केंद्रीयकृत बीमा कंपनियों को देश के विभिन्न राज्यों की क्षेत्रीय भाषाओं में दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए अपने सिस्टम को अपडेट नहीं करना चाहिए? क्या यह उपभोक्ताओं पर अनावश्यक बोझ नहीं है कि उन्हें अपनी एफआईआर का अनुवाद करवाकर नोटराइज कराना पड़े? महाराष्ट्र में पहले भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले हैं जब बैंक, रेलवे या अन्य केंद्रीय संस्थानों में मराठी भाषा के उपयोग को लेकर विवाद खड़ा हुआ है। यह घटना सरकार और संबंधित संस्थानों के लिए एक चेतावनी है कि उन्हें स्थानीय भाषाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि भाषाई बाधाएं नागरिकों को उनके हक से वंचित न करें।

  • ‘नागद्वार’ की राह में रोड़ा बना लालफीताशाही

    ‘नागद्वार’ की राह में रोड़ा बना लालफीताशाही

    नागपुर के हजारों श्रद्धालु परेशान
    नागपुर.
    नागपुर से मध्य प्रदेश के पचमढ़ी स्थित नागद्वार मेले की पवित्र यात्रा पर जाने वाले हजारों श्रद्धालुओं के लिए इस साल मुश्किलें खड़ी हो गई हैं। एसटी बसों के लिए मध्य प्रदेश सरकार से परमिट न मिलने की समस्या ने आस्था के इस पर्व से पहले ही यात्रियों और एसटी महामंडल दोनों की चिंता बढ़ा दी है। यह केवल परिवहन का मुद्दा नहीं, बल्कि हजारों भक्तों की आस्था और सुविधा से जुड़ा संवेदनशील मामला है।

    अंतर-राज्यीय समन्वय की कमी
    नागपंचमी पर नागद्वार मेले में शामिल होने के लिए नागपुर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु हर साल रवाना होते हैं। एसटी बसें इन यात्रियों के लिए सबसे भरोसेमंद और किफायती परिवहन साधन रही हैं, खासकर उन परिवारों के लिए जिनके पास निजी वाहन नहीं हैं। ऐसे में 48 बसों के लिए परमिट न मिलना सीधे तौर पर हजारों लोगों की यात्रा योजनाओं को बाधित कर रहा है। पिछले दस दिनों से एसटी के वरिष्ठ अधिकारी मध्य प्रदेश शासन से संपर्क साध रहे हैं, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता या अंतर-राज्यीय समन्वय की कमी के कारण परमिट मिलने में हो रही देरी स्वीकार्य नहीं है।

    निजी बस संचालक करेंगे मनमानी
    यदि यह समस्या जल्द हल नहीं हुई, तो इसका सीधा खामियाजा श्रद्धालुओं को भुगतना पड़ेगा। सबसे बड़ा डर निजी बसों की मनमानी का है। जहाँ एसटी बसें कम किराए पर आरामदायक यात्रा उपलब्ध कराती हैं, वहीं निजी बसें इस मजबूरी का फायदा उठाकर यात्रियों से मनमाना किराया वसूल सकती हैं, जिससे पहले से ही कम बजट वाले श्रद्धालुओं की जेब पर भारी बोझ पड़ेगा।

    सदन में उठा मुद्दा
    विधानमंडल सत्र में नागपुर के विधायक अभिजीत वंजारी द्वारा इस मुद्दे को विधान परिषद में उठाना सराहनीय कदम है। परिवहन राज्य मंत्री ने मध्य प्रदेश सरकार से जल्द से जल्द अनुमति प्राप्त करने के लिए शिष्टमंडल भेजने का आश्वासन दिया है, जो एक सकारात्मक संकेत है। एसटी महामंडल के विभाग नियंत्रक विनोद चावरे की उम्मीद है कि परमिट जल्द मिलेगा, लेकिन यह समयबद्ध कार्रवाई की मांग करता है। सरकारों को यह समझना होगा कि यह सिर्फ परिवहन का मामला नहीं है, बल्कि लाखों लोगों की धार्मिक भावनाओं और उनके सहज यात्रा के अधिकार से जुड़ा है। आस्था के मार्ग में लालफीताशाही द्वारा अड़चनें पैदा करना दुर्भाग्यपूर्ण है और इसे तत्काल दूर किया जाना चाहिए।

  • अवैध साहूकार पर कसें नकेल, इनके खातों से खुलेगा पूरा खेल

    अवैध साहूकार पर कसें नकेल, इनके खातों से खुलेगा पूरा खेल

    सीधा सवाल…कानून का राज या जंगलराज
    नागपुर.
    नागपुर के हुडकेश्वर में एक साहूकार द्वारा कर्जदार का दिनदहाड़े अपहरण और बेरहमी से पिटाई की घटना ने महाराष्ट्र में अवैध साहूकारी के बढ़ते खतरे को उजागर कर दिया है। यह सिर्फ एक स्थानीय वारदात नहीं, बल्कि पूरे प्रदेश में गैर-कानूनी कर्ज और उसके भयावह परिणामों की एक बानगी है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे कुछ लोग कानून को अपने हाथ में लेने से भी नहीं हिचकते, और नागपुर जैसे प्रमुख शहर में भी आम नागरिक सुरक्षित नहीं हैं।

    दबंगई का नतीजा
    विशाल उरकुडे के साथ जो हुआ, वह अत्यंत विचलित करने वाला है। 7 प्रतिशत के भारी ब्याज पर ₹30 लाख का कर्ज, ₹4 लाख चुकाने के बावजूद करोड़ों की संपत्ति हड़पने का दबाव, और फिर दिनदहाड़े अपहरण कर घंटों तक अमानवीय पिटाई – यह सब एक लाइसेंस-विहीन साहूकार प्रवीण उर्फ बालुभाऊ भुरकेवार और उसके साथियों की दबंगई का नतीजा है। पुलिस की त्वरित कार्रवाई सराहनीय है, जिसके चलते मुख्य आरोपी और उसके तीन साथी गिरफ्तार कर लिए गए हैं, और उन्हें पुलिस रिमांड पर भेज दिया गया है। अवैध साहूकारी की धाराएँ लगाना भी सही दिशा में उठाया गया कदम है।

    हताशा में जान दे रहे हैं लोग
    लेकिन यह घटना सिर्फ एक बानगी है। खबर में यह भी उल्लेख है कि कई पीड़ित अभी भी न्याय के लिए पुलिस के चक्कर काट रहे हैं, और कुछ ने तो हताशा में आत्महत्या का प्रयास भी किया है। यह बेहद चिंताजनक है। इससे भी अधिक गंभीर बात यह है कि कुछ नेताओं का संरक्षण होने के कारण अवैध साहूकार पुलिस से भी नहीं डरते। यदि यह बात सत्य है, तो यह कानून के शासन के लिए एक बड़ा खतरा है।

    नेटवर्क को तोड़ना जरूरी
    महाराष्ट्र सरकार और पुलिस प्रशासन को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना चाहिए। सिर्फ एक मामले में कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। पूरे प्रदेश में अवैध साहूकारी के नेटवर्क को तोड़ने, पीड़ितों को न्याय दिलाने और ऐसे अपराधियों को संरक्षण देने वाले तत्वों की पहचान करने की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना अत्यंत आवश्यक है कि आम जनता को वित्तीय सहायता के लिए किसी साहूकार के आगे झुकना न पड़े और कानून का राज पूरी तरह से स्थापित हो।

  • नागपुर जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर फिर सवाल

    नागपुर जेल की सुरक्षा व्यवस्था पर फिर सवाल

    कैदी की आत्महत्या के बाद गर्माया मुद्दा
    नागपुर.
    नागपुर सेंट्रल जेल में हत्या के दोषी तुलसीराम लाकाडू शेंडे (54) द्वारा अंडरवियर के इलास्टिक बैंड से फाँसी लगाकर आत्महत्या करने की घटना ने जेल प्रशासन की सुरक्षा व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह कोई इक्का-दुक्का मामला नहीं है, बल्कि महाराष्ट्र की जेलों में कैदियों द्वारा आत्महत्या के बढ़ते मामले एक चिंताजनक प्रवृत्ति की ओर इशारा करते हैं।

    फिर जेल में निगरानी का क्या मतलब
    तुलसीराम को 30 जून 2024 को ही हत्या के एक मामले में दोषी ठहराया गया था और तब से वह नागपुर जेल में बंद था। यह घटना धंतोली पुलिस को बुधवार को मिली सूचना के बाद सामने आई, जिसके बाद जांच शुरू कर दी गई है। हालांकि पुलिस ने इसे आकस्मिक मृत्यु का मामला दर्ज किया है, लेकिन यह समझना आवश्यक है कि एक कैदी, जो चौबीसों घंटे निगरानी में होता है, आखिर कैसे इस तरह के कदम उठा पाता है।

    पहले भी हो चुकी हैं वारदातें
    यह घटना इसलिए भी अधिक गंभीर हो जाती है क्योंकि नागपुर सेंट्रल जेल में ऐसी वारदातें पहले भी हो चुकी हैं। दो साल पहले सीजो चंद्रन नामक कैदी ने भी आत्महत्या का प्रयास किया था। इसके अलावा, अप्रैल 2025 में ठाणे की तलोजा जेल में विशाल गवली और अक्टूबर 2024 में ठाणे जेल में दीपक गुप्ता नामक कैदियों की आत्महत्याओं ने भी जेलों के भीतर कैदियों की सुरक्षा और मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर बड़े सवाल खड़े किए थे।

    जेलें सुधार गृह होनी चाहिए
    ये घटनाएँ दर्शाती हैं कि भारतीय जेलें, विशेषकर महाराष्ट्र की जेलें, कैदियों की शारीरिक सुरक्षा के साथ-साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल में भी विफल हो रही हैं। क्या जेलों में पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित कर्मचारी नहीं हैं जो कैदियों के व्यवहार पर नज़र रख सकें? क्या कैदियों को मानसिक स्वास्थ्य सहायता और परामर्श उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है? जेलें सुधार गृह होनी चाहिए, न कि ऐसी जगहें जहाँ कैदी हताशा में अपनी जान ले लें। इस घटना की गहन जांच होनी चाहिए और जेल प्रशासन को अपनी नीतियों और प्रक्रियाओं की समीक्षा करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियों को रोका जा सके। कैदियों के मानवाधिकारों और उनके मानसिक कल्याण को प्राथमिकता देना समय की मांग है।

  • नागपुर की गलियों तक हनी ट्रैप का साया

    नागपुर की गलियों तक हनी ट्रैप का साया

    पारदर्शिता पर उठे सवाल
    मुंबई.
    महाराष्ट्र विधानसभा में हनी ट्रैप का मुद्दा गरमाना राज्य की राजनीतिक और सामाजिक शुचिता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। कांग्रेस विधायक नाना पटोले ने इस संवेदनशील मामले को उठाते हुए जिस तरह से मंत्रियों, नेताओं और अधिकारियों के कथित रूप से फंसने का दावा किया, वह नागपुर सहित पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। यह सिर्फ मुंबई का मामला नहीं है, बल्कि सत्ता के गलियारों में पनपी ऐसी गतिविधियाँ अक्सर राज्य के दूसरे बड़े शहरों तक भी अपनी जड़ें फैलाती हैं।

    पटोले का सवाल बिल्कुल जायज
    पटोले का यह कहना कि सोशल मीडिया और मीडिया में ये चर्चाएँ सुर्खियाँ बटोर रही हैं, दिखाता है कि जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर कितनी उत्सुकता और चिंता है। मुंबई के एक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज होने और शिकायतकर्ता के पास वीडियो होने का दावा स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा देता है। पटोले का यह सवाल बिल्कुल जायज है कि जब मीडिया में इतनी जानकारी आ गई है, तो राज्य सरकार चुप क्यों है? क्या सरकार सच में हनी ट्रैप में फंसे लोगों को बचाने का प्रयास कर रही है, जैसा कि उन्होंने आरोप लगाया? मुख्यमंत्री और गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस मामले पर चुप्पी तोड़नी चाहिए और राज्य की जनता को सच्चाई बतानी चाहिए।

    सुरक्षा एजेंसियां इससे अनजान कैसे
    राकांपा (शरद) के मुख्य प्रवक्ता महेश तपासे ने भी खुफिया एजेंसियों की विफलता पर सवाल उठाए हैं। यह कैसे संभव है कि इतने बड़े पैमाने पर हनी ट्रैप की घटनाएं हो रही हों और राज्य की सुरक्षा एजेंसियां इससे अनजान हों? यह सिर्फ सुरक्षा चूक का मामला नहीं, बल्कि सत्ता के करीब बैठे लोगों की नैतिक जवाबदेही का भी प्रश्न है। नागपुर जैसे शहर, जो महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी है और जहाँ कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र हैं, वहाँ भी ऐसी गतिविधियों के फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। 72 लोगों के फंसे होने के दावे ने तो इस मामले को और भी गंभीर बना दिया है।

    दोषियों को बेनकाब करें
    सरकार को इस मामले में तत्काल और पारदर्शी जांच करवानी चाहिए। दोषियों को बेनकाब करना और उन्हें कानून के दायरे में लाना अत्यंत आवश्यक है, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह सिर्फ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के सुशासन और नैतिक मूल्यों का सवाल है।

  • शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार की घुसपैठ का एक और प्रमाण

    शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार की घुसपैठ का एक और प्रमाण

    नागपुर में दिव्यांग बच्चों के स्कूल का मामला
    मुंबई.
    नागपुर के मातोश्री शोभाताई भाकरे मतिमंद बच्चों के आवासीय स्कूल में सामने आई अनियमितताएं शिक्षा जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी का एक और उदाहरण पेश करती हैं। दिव्यांग कल्याण मंत्री अतुल सावे द्वारा दिव्यांग कल्याण आयुक्त प्रवीण पुरी को निलंबित करने की घोषणा, भले ही देरी से हो, एक आवश्यक कदम है। लेकिन, यह घटना सिर्फ एक स्कूल या एक अधिकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागपुर सहित पूरे प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में पनप रही गहरी समस्या की ओर इशारा करती है।

    जोशी ने मुद्दे को उठाया
    भाजपा सदस्य संदीप जोशी ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से स्कूल प्रबंधक द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार और अन्य अनियमितताओं का मुद्दा उठाया था। यह शर्मनाक है कि जिन संस्थानों को सबसे कमजोर तबके, यानी दिव्यांग बच्चों को सहारा देना चाहिए, वहीं उन्हें शोषण और अनियमितताओं का सामना करना पड़ रहा है। मंत्री सावे ने यह भी स्वीकार किया कि पुरी के खिलाफ कई शिकायतें लंबित थीं। यह सवाल उठता है कि इन शिकायतों पर पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या सिस्टम इतना निष्क्रिय है कि उसे किसी विधायक के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का इंतजार करना पड़ता है, जबकि बच्चों का भविष्य और शिक्षकों का सम्मान दांव पर लगा हो?

    शिक्षा विभाग में जवाबदेही की कमी
    यह घटना शिक्षा विभाग में जवाबदेही की कमी और पारदर्शिता के अभाव को उजागर करती है। ऐसे मामलों में केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है। एक व्यापक जांच की आवश्यकता है ताकि यह पता चल सके कि ऐसी अनियमितताएं क्यों पनप रही हैं और इसमें कौन-कौन शामिल हैं। शिक्षा, विशेषकर दिव्यांग बच्चों की शिक्षा, में किसी भी तरह की लापरवाही या भ्रष्टाचार अक्षम्य है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए न केवल दोषी अधिकारियों और संस्थाओं पर कड़ी कार्रवाई हो, बल्कि एक ऐसा तंत्र भी विकसित किया जाए जो ऐसी अनियमितताओं को पनपने से पहले ही रोक सके। नागपुर के शिक्षा जगत को इस घटना से सबक लेना चाहिए और अपनी प्रणाली में व्याप्त खामियों को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

  • शिंदे के पास नहीं बैठना चाहते उद्धव, फडणवीस सत्ता का ऑफर दे रहे हैं

    शिंदे के पास नहीं बैठना चाहते उद्धव, फडणवीस सत्ता का ऑफर दे रहे हैं

    समझें, महाराष्ट्र की राजनीतिक खींचतान, जुबानी जंग और सत्ता के इशारे
    मुंबई.
    महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के विदाई समारोह का मंच राजनीतिक दांव-पेंच और जुबानी हमलों का अखाड़ा बन गया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे को सत्ता में आने का सीधा न्योता देकर सबको चौंका दिया, जबकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच तीखी नोकझोंक ने मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में खिंचाव को स्पष्ट कर दिया।

    क्या सुलह के मूड में है भाजपा
    फडणवीस ने दानवे के दोबारा सदन में लौटने की शुभकामना देते हुए कहा कि जरूरी नहीं कि वे उसी पद पर लौटें। जब उद्धव ठाकरे ने मज़ाकिया लहजे में फडणवीस को ही विपक्ष में आने का सुझाव दिया, तो मुख्यमंत्री का जवाब था, “उद्धवजी, हमारे लिए साल 2029 तक विपक्ष में बैठने की उम्मीद नहीं है। लेकिन यदि आप सदन में सत्तारूढ़ दल की ओर आना चाहेंगे तो इस पर अलग तरीके से विचार किया जा सकता है।” फडणवीस का यह बयान एक स्पष्ट संकेत था कि भाजपा अभी भी ठाकरे गुट के साथ सुलह की गुंजाइश देख रही है, शायद आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए।

    राजनीतिक तनातनी कम नहीं
    इस दौरान, एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच की कड़वाहट खुलकर सामने आई। शिंदे ने दानवे की तारीफ करते हुए उनके गरीबी से उठकर गरीबों के लिए काम करने की बात कही। इस पर उद्धव ने शिंदे का नाम लिए बिना उन पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि दानवे ने “भरी हुई थाली से प्रताड़ना नहीं की” और “उसी दल में बने हुए हैं जिसने उन्हें सब कुछ दिया”, जबकि “कुछ लोग थाली भरी होने के बाद भी और कुछ हासिल करने की चाहत में दूसरे रेस्टोरेंट में गए हैं।” यह सीधा हमला शिंदे के शिवसेना से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले पर था। बाद में, फोटो सेशन के दौरान उद्धव का शिंदे के बगल में बैठने से परहेज करना भी इस राजनीतिक तनातनी का स्पष्ट प्रमाण था। यह घटनाक्रम महाराष्ट्र की राजनीति में गहरे मतभेदों और भविष्य के संभावित गठबंधनों की ओर इशारा करता है।