शिंदे के पास नहीं बैठना चाहते उद्धव, फडणवीस सत्ता का ऑफर दे रहे हैं

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Uddhav does not want to sit with Shinde, Fadnavis is offering power

समझें, महाराष्ट्र की राजनीतिक खींचतान, जुबानी जंग और सत्ता के इशारे
मुंबई.
महाराष्ट्र विधान परिषद में विपक्ष के नेता अंबादास दानवे के विदाई समारोह का मंच राजनीतिक दांव-पेंच और जुबानी हमलों का अखाड़ा बन गया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उद्धव ठाकरे को सत्ता में आने का सीधा न्योता देकर सबको चौंका दिया, जबकि उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच तीखी नोकझोंक ने मौजूदा राजनीतिक समीकरणों में खिंचाव को स्पष्ट कर दिया।

क्या सुलह के मूड में है भाजपा
फडणवीस ने दानवे के दोबारा सदन में लौटने की शुभकामना देते हुए कहा कि जरूरी नहीं कि वे उसी पद पर लौटें। जब उद्धव ठाकरे ने मज़ाकिया लहजे में फडणवीस को ही विपक्ष में आने का सुझाव दिया, तो मुख्यमंत्री का जवाब था, “उद्धवजी, हमारे लिए साल 2029 तक विपक्ष में बैठने की उम्मीद नहीं है। लेकिन यदि आप सदन में सत्तारूढ़ दल की ओर आना चाहेंगे तो इस पर अलग तरीके से विचार किया जा सकता है।” फडणवीस का यह बयान एक स्पष्ट संकेत था कि भाजपा अभी भी ठाकरे गुट के साथ सुलह की गुंजाइश देख रही है, शायद आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए।

राजनीतिक तनातनी कम नहीं
इस दौरान, एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के बीच की कड़वाहट खुलकर सामने आई। शिंदे ने दानवे की तारीफ करते हुए उनके गरीबी से उठकर गरीबों के लिए काम करने की बात कही। इस पर उद्धव ने शिंदे का नाम लिए बिना उन पर कटाक्ष किया। उन्होंने कहा कि दानवे ने “भरी हुई थाली से प्रताड़ना नहीं की” और “उसी दल में बने हुए हैं जिसने उन्हें सब कुछ दिया”, जबकि “कुछ लोग थाली भरी होने के बाद भी और कुछ हासिल करने की चाहत में दूसरे रेस्टोरेंट में गए हैं।” यह सीधा हमला शिंदे के शिवसेना से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनाने के फैसले पर था। बाद में, फोटो सेशन के दौरान उद्धव का शिंदे के बगल में बैठने से परहेज करना भी इस राजनीतिक तनातनी का स्पष्ट प्रमाण था। यह घटनाक्रम महाराष्ट्र की राजनीति में गहरे मतभेदों और भविष्य के संभावित गठबंधनों की ओर इशारा करता है।

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