शिक्षा के मंदिर में भ्रष्टाचार की घुसपैठ का एक और प्रमाण

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Another proof of corruption infiltrating the temple of education

नागपुर में दिव्यांग बच्चों के स्कूल का मामला
मुंबई.
नागपुर के मातोश्री शोभाताई भाकरे मतिमंद बच्चों के आवासीय स्कूल में सामने आई अनियमितताएं शिक्षा जगत में व्याप्त भ्रष्टाचार और जवाबदेही की कमी का एक और उदाहरण पेश करती हैं। दिव्यांग कल्याण मंत्री अतुल सावे द्वारा दिव्यांग कल्याण आयुक्त प्रवीण पुरी को निलंबित करने की घोषणा, भले ही देरी से हो, एक आवश्यक कदम है। लेकिन, यह घटना सिर्फ एक स्कूल या एक अधिकारी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह नागपुर सहित पूरे प्रदेश के शिक्षा क्षेत्र में पनप रही गहरी समस्या की ओर इशारा करती है।

जोशी ने मुद्दे को उठाया
भाजपा सदस्य संदीप जोशी ने ध्यानाकर्षण प्रस्ताव के माध्यम से स्कूल प्रबंधक द्वारा शिक्षकों के साथ दुर्व्यवहार और अन्य अनियमितताओं का मुद्दा उठाया था। यह शर्मनाक है कि जिन संस्थानों को सबसे कमजोर तबके, यानी दिव्यांग बच्चों को सहारा देना चाहिए, वहीं उन्हें शोषण और अनियमितताओं का सामना करना पड़ रहा है। मंत्री सावे ने यह भी स्वीकार किया कि पुरी के खिलाफ कई शिकायतें लंबित थीं। यह सवाल उठता है कि इन शिकायतों पर पहले कार्रवाई क्यों नहीं हुई? क्या सिस्टम इतना निष्क्रिय है कि उसे किसी विधायक के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव का इंतजार करना पड़ता है, जबकि बच्चों का भविष्य और शिक्षकों का सम्मान दांव पर लगा हो?

शिक्षा विभाग में जवाबदेही की कमी
यह घटना शिक्षा विभाग में जवाबदेही की कमी और पारदर्शिता के अभाव को उजागर करती है। ऐसे मामलों में केवल निलंबन पर्याप्त नहीं है। एक व्यापक जांच की आवश्यकता है ताकि यह पता चल सके कि ऐसी अनियमितताएं क्यों पनप रही हैं और इसमें कौन-कौन शामिल हैं। शिक्षा, विशेषकर दिव्यांग बच्चों की शिक्षा, में किसी भी तरह की लापरवाही या भ्रष्टाचार अक्षम्य है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। इसके लिए न केवल दोषी अधिकारियों और संस्थाओं पर कड़ी कार्रवाई हो, बल्कि एक ऐसा तंत्र भी विकसित किया जाए जो ऐसी अनियमितताओं को पनपने से पहले ही रोक सके। नागपुर के शिक्षा जगत को इस घटना से सबक लेना चाहिए और अपनी प्रणाली में व्याप्त खामियों को दूर करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

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