नागपुर की गलियों तक हनी ट्रैप का साया

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Shadow of honey trap reaches the streets of Nagpur

पारदर्शिता पर उठे सवाल
मुंबई.
महाराष्ट्र विधानसभा में हनी ट्रैप का मुद्दा गरमाना राज्य की राजनीतिक और सामाजिक शुचिता पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न लगाता है। कांग्रेस विधायक नाना पटोले ने इस संवेदनशील मामले को उठाते हुए जिस तरह से मंत्रियों, नेताओं और अधिकारियों के कथित रूप से फंसने का दावा किया, वह नागपुर सहित पूरे प्रदेश में चर्चा का विषय बन गया है। यह सिर्फ मुंबई का मामला नहीं है, बल्कि सत्ता के गलियारों में पनपी ऐसी गतिविधियाँ अक्सर राज्य के दूसरे बड़े शहरों तक भी अपनी जड़ें फैलाती हैं।

पटोले का सवाल बिल्कुल जायज
पटोले का यह कहना कि सोशल मीडिया और मीडिया में ये चर्चाएँ सुर्खियाँ बटोर रही हैं, दिखाता है कि जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर कितनी उत्सुकता और चिंता है। मुंबई के एक पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज होने और शिकायतकर्ता के पास वीडियो होने का दावा स्थिति की गंभीरता को और बढ़ा देता है। पटोले का यह सवाल बिल्कुल जायज है कि जब मीडिया में इतनी जानकारी आ गई है, तो राज्य सरकार चुप क्यों है? क्या सरकार सच में हनी ट्रैप में फंसे लोगों को बचाने का प्रयास कर रही है, जैसा कि उन्होंने आरोप लगाया? मुख्यमंत्री और गृहमंत्री देवेंद्र फडणवीस को इस मामले पर चुप्पी तोड़नी चाहिए और राज्य की जनता को सच्चाई बतानी चाहिए।

सुरक्षा एजेंसियां इससे अनजान कैसे
राकांपा (शरद) के मुख्य प्रवक्ता महेश तपासे ने भी खुफिया एजेंसियों की विफलता पर सवाल उठाए हैं। यह कैसे संभव है कि इतने बड़े पैमाने पर हनी ट्रैप की घटनाएं हो रही हों और राज्य की सुरक्षा एजेंसियां इससे अनजान हों? यह सिर्फ सुरक्षा चूक का मामला नहीं, बल्कि सत्ता के करीब बैठे लोगों की नैतिक जवाबदेही का भी प्रश्न है। नागपुर जैसे शहर, जो महाराष्ट्र की दूसरी राजधानी है और जहाँ कई महत्वपूर्ण राजनीतिक और प्रशासनिक केंद्र हैं, वहाँ भी ऐसी गतिविधियों के फैलने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। 72 लोगों के फंसे होने के दावे ने तो इस मामले को और भी गंभीर बना दिया है।

दोषियों को बेनकाब करें
सरकार को इस मामले में तत्काल और पारदर्शी जांच करवानी चाहिए। दोषियों को बेनकाब करना और उन्हें कानून के दायरे में लाना अत्यंत आवश्यक है, ताकि जनता का विश्वास बहाल हो सके और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके। यह सिर्फ राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा नहीं, बल्कि महाराष्ट्र के सुशासन और नैतिक मूल्यों का सवाल है।

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