यह चाटुकारिता नहीं, फुके की भावना है

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This is not flattery, it is the spirit of Phuke

मुख्यमंत्री फडणवीस को ‘देवता’ बना दिया
मुंबई.
नागपुर से भाजपा विधायक परिणय फुके ने महाराष्ट्र विधान परिषद में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की प्रशंसा में जो शब्द कहे, वे किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में चाटुकारिता की पराकाष्ठा ही माने जाएंगे। नियम-260 के प्रस्ताव पर बोलते हुए फुके ने फडणवीस को न केवल देवतुल्य बताया, बल्कि यहां तक कह दिया कि वह उनकी “आरती” गाते हैं। यह बयान बताता है कि सत्ता के गलियारों में कैसे व्यक्ति पूजा और अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा एक आम चलन बनती जा रही है।

स्तुतिगान किसी भक्ति भजन से कम नहीं
फुके ने मुख्यमंत्री के चरित्र को प्रभु श्रीराम जैसा, उनकी बुद्धि को श्रीकृष्ण जैसा चतुर और उनकी सहनशक्ति को भगवान महादेव जैसा बताया। इतना ही नहीं, फडणवीस में “विष पचाने की क्षमता” और सूर्य की तरह तेजस्वी तथा चंद्रमा की तरह शीतल होने के गुण भी गिनाए गए। यह स्तुतिगान किसी भक्ति भजन से कम नहीं था, जो एक चुने हुए प्रतिनिधि द्वारा अपने ही मुख्यमंत्री के लिए विधानसभा के पटल पर किया गया। यह विडंबना ही है कि यही फुके कुछ समय पहले, 1 जुलाई को, विकास निधि न मिलने पर अपनी ही सरकार की आलोचना कर चुके थे और विधान परिषद को गंभीरता से न लेने की बात कही थी।

यू-टर्न लेने में कितनी सहजता
यह घटना दर्शाती है कि राजनीति में पाला बदलने और बयानों में यू-टर्न लेने में कितनी सहजता आ गई है। जहां एक ओर विपक्ष ऐसे बयानों पर तंज कसता है, वहीं दूसरी ओर ऐसे बयान देने वाले नेता शायद यह भूल जाते हैं कि वे जन प्रतिनिधि हैं, किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत भक्त नहीं। लोकतंत्र में नेताओं की प्रशंसा उनके काम के आधार पर होनी चाहिए, न कि पौराणिक पात्रों से तुलना करके उन्हें भगवान का दर्जा देकर। ऐसी अतिशयोक्तिपूर्ण प्रशंसा न केवल लोकतंत्र की मूल भावना को कमजोर करती है, बल्कि जनता के बीच भी नेताओं की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।

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