पत्नी को गुजारा भत्ता देने बन गया चेन स्नैचर

विवशता बनी अपराध का बहाना
नागपुर.
नागपुर में एक व्यक्ति का पत्नी को गुजारा भत्ता देने और घर खर्च चलाने की “विवशता” में चेन स्नैचर बन जाना, समाज के सामने कई गंभीर सवाल खड़े करता है। यह घटना, जिसमें कन्हैया नारायण बौराशी नामक शख्स ने अपराध का रास्ता अपनाया और पुलिस ने उसे रंगे हाथों पकड़ा, एक दुखद सच्चाई को सामने लाती है: अपराध आखिर अपराध है, और कोई भी विवशता उसे जायज नहीं ठहरा सकती।

दुकानदार को भी पकड़ा गया
कन्हैया बौराशी, जो लगभग दो साल से बेरोजगार था, ने अपनी आर्थिक तंगी और पत्नी को गुजारा भत्ता देने की मजबूरी को अपराध का औचित्य बना लिया। उसने जयश्री जयकुमार गाडे जैसी बुजुर्ग महिला के गले से दिनदहाड़े गहने छीनने जैसे जघन्य कृत्य किए। पुलिस ने सीसीटीवी फुटेज और ठोस जांच के दम पर कन्हैया को धर-दबोचा, और फिर उससे चोरी का माल खरीदने वाले सराफा दुकानदार अमरदीप कृष्णराव नखाते को भी गिरफ्तार किया। यह कार्रवाई सराहनीय है और दिखाती है कि पुलिस अपराधियों तक पहुंचने में सक्षम है। कुल ₹1,85,500 का माल जब्त किया गया है, जिसमें 10.940 ग्राम सोने के गहने शामिल हैं, और पुलिस ने 5 चेन स्नैचिंग के मामलों का खुलासा किया है।

“विवशता” अपराध की गंभीरता कम नहीं करती
यह सच है कि बेरोजगारी और आर्थिक संकट व्यक्तिगत जीवन में भारी दबाव डालते हैं। गुजारा भत्ता जैसी कानूनी बाध्यताएँ भी आर्थिक बोझ बढ़ा सकती हैं। लेकिन, किसी भी परिस्थिति में कानून तोड़ना और निर्दोष नागरिकों को नुकसान पहुँचाना स्वीकार्य नहीं है। कन्हैया का मामला इस बात पर जोर देता है कि समाज और सरकार दोनों को उन कारणों पर ध्यान देना चाहिए जो व्यक्तियों को अपराध की ओर धकेलते हैं, जैसे कि बेरोजगारी, गरीबी और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं। हालांकि, यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि अपराध की कोई भी “विवशता” उसकी गंभीरता को कम नहीं करती।

यह घटना एक संदेश है
आपराधिक कृत्यों के लिए कोई बहाना नहीं होता। समाज को उन व्यक्तियों के लिए सुरक्षित विकल्प और समर्थन प्रणालियाँ विकसित करनी होंगी जो आर्थिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं, ताकि कोई भी विवशता के नाम पर अपराध का रास्ता न चुने। साथ ही, कानून प्रवर्तन एजेंसियों को ऐसे मामलों में तेजी से और दृढ़ता से कार्रवाई करनी चाहिए ताकि यह संदेश स्पष्ट हो कि कानून तोड़ने वालों को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे उनकी “विवशता” कोई भी रही हो।

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