अनिल देशमुख ने लगाए गंभीर आरोप
नागपुर.
महाराष्ट्र में स्मार्ट बिजली मीटर लगाने की प्रक्रिया पर पूर्व मंत्री अनिल देशमुख ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका स्पष्ट कहना है कि यह मामला केवल तकनीकी बदलाव का नहीं, बल्कि लाखों उपभोक्ताओं के आर्थिक हितों और सरकार के आश्वासनों की विश्वसनीयता से जुड़ा है। देशमुख का यह भी कहना कि कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए स्मार्ट मीटर की सख्ती की जा रही है, लिहाजा पूरी परियोजना की पारदर्शिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
उदाहरण देकर समझाया
उदाहरण देते हुए उन्होंने बताया कि स्मार्ट मीटर का मुख्य उद्देश्य बिजली खपत की सटीक गणना करना, चोरी रोकना और उपभोक्ताओं को अपनी खपत पर बेहतर नियंत्रण देना है। लेकिन, जब उपभोक्ताओं को पहले के 2,000 रुपये के बिल की जगह 28,000 रुपये का बिल मिल रहा है, तो यह स्पष्ट है कि कहीं न कहीं गंभीर गड़बड़ी है। ऐसी शिकायतें केवल एक या दो नहीं, बल्कि बड़े पैमाने पर मिल रही हैं। ये अचानक बढ़े हुए बिल नागरिकों पर एक बड़ा वित्तीय बोझ डाल रहे हैं, जिससे उनके कर्ज में डूबने की आशंका बढ़ रही है।
फडणवीस पर वादाखिलाफी का आरोप
देशमुख ने कहा कि यह विडंबना है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने विधानसभा चुनाव से पहले खुद स्मार्ट मीटर न लगाने का आश्वासन दिया था, लेकिन अब उनकी सरकार इसे बड़े पैमाने पर लागू कर रही है। यह सीधा-सीधा चुनावी वादे से मुकरने का मामला है। यह सिर्फ एक राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का मुद्दा नहीं है, बल्कि यह सरकार और जनता के बीच के विश्वास को कमजोर करता है।
कंपनियों को लाभ देने की नीति
सरकार को इस मामले में तुरंत हस्तक्षेप करना चाहिए। महावितरण कंपनी का मार्च 2026 तक पूरे राज्य में स्मार्ट मीटर लगाने का लक्ष्य, इन शिकायतों के समाधान के बिना, और भी बड़े संकट को जन्म दे सकता है। सरकार को इन बढ़े हुए बिलों की जांच करनी चाहिए और उन कारणों का पता लगाना चाहिए जो इतनी बड़ी विसंगति पैदा कर रहे हैं। यदि स्मार्ट मीटर वास्तव में दोषपूर्ण हैं, तो उन्हें तुरंत बदला जाना चाहिए। साथ ही, जब तक इन समस्याओं का समाधान नहीं होता, तब तक स्मार्ट मीटर लगाने की प्रक्रिया पर रोक लगाई जानी चाहिए। नागरिकों को यह महसूस होना चाहिए कि सरकार उनके हितों की रक्षा के लिए है, न कि निजी कंपनियों के लाभ के लिए।