पूर्व विधायक को सजा, न्याय की जीत

कानून से ऊपर कोई नहीं
नागपुर.
पूर्व विधायक को जिला न्यायालय द्वारा एक साल के कारावास की सजा सुनाया जाना, यह साबित करता है कि कानून की नजर में कोई भी व्यक्ति, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो, कानून से ऊपर नहीं है। पुलिस के साथ मारपीट और शासकीय कार्य में बाधा डालने के मामले में आरोपी कन्नड़ के पूर्व विधायक हर्षवर्धन जाधव को जिला न्यायालय ने एक साल का कारावास और बीस हजार रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। जिला न्यायाधीश आर. जे. राय ने बुधवार को यह फैसला सुनाया।

यह आरोप लगे थे
शिकायत के अनुसार, 6 दिसंबर 2014 को शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की नागपुर के होटल प्राइड में पार्टी नेताओं के साथ बैठक चल रही थी, तभी जाधव ने बैठक कक्ष में प्रवेश करने की कोशिश की। विशेष सुरक्षा दस्ते के पुलिस निरीक्षक पराग जाधव ने उन्हें कक्ष में जाने से रोका। इस पर हर्षवर्धन जाधव ने पुलिस निरीक्षक पराग जाधव को थप्पड़ मार दिया। इस घटना के बाद सोनेगांव पुलिस ने जाधव के खिलाफ सरकारी कार्य में बाधा डालने और मारपीट का मामला दर्ज किया।

इस निष्कर्ष पर पहुंचा कोर्ट
इस मामले की सुनवाई के दौरान बार-बार अनुपस्थित रहने के कारण न्यायालय ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया था। 17 फरवरी को जाधव के न्यायालय में पेश होने के बाद उन्हें कारागृह भेज दिया गया था। लेकिन बाद में कोर्ट ने उन्हें जमानत पर रिहा किया था। इस मामले में सभी पक्षों और गवाहों के बयान दर्ज करने के बाद न्यायालय ने बुधवार इस मामले का फैसला सुनाया, जिसमें हर्षवर्धन जाधव को दोषी पाया गया।

न्याय में विश्वास हुआ पुख्ता
इस तरह की घटनाएं अक्सर राजनीतिक नेताओं द्वारा की जाती हैं, जब वे अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करते हैं। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि प्रभावशाली लोग कानून के शिकंजे से बच निकलते हैं, लेकिन इस मामले में न्यायालय ने यह सुनिश्चित किया कि न्याय की जीत हो। न्यायालय ने जाधव को भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (सरकारी कर्मचारी को उसके कर्तव्य के निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और धारा 332 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना) के तहत दोषी ठहराया है। इस मामले में सजा सुनाए जाने में भले ही काफी समय लगा हो, लेकिन यह अंततः न्याय की जीत है। बार-बार अनुपस्थित रहने के कारण उनके खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी किया गया था, जो यह दर्शाता है कि न्यायालय ने इस मामले को कितनी गंभीरता से लिया।

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