होगी समीक्षा, समिति लेगी निर्णय
नागपुर.
शिवसेना में विभाजन के बाद, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले गुट के सामने संगठन विस्तार और नियुक्तियों को लेकर कई चुनौतियां और आंतरिक मतभेद सामने आते रहे हैं। शिंदे गुट में ऐसे कई नेता और कार्यकर्ता शामिल हुए हैं, जो पहले उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना में थे, या भाजपा और अन्य दलों से आए हैं। इन सभी को संगठन में उपयुक्त पद और जिम्मेदारियां देना एक बड़ी चुनौती है। आने वाले चुनावों में सीटों के बंटवारे को लेकर भी आंतरिक खींचतान देखने को मिल रही है। हर नेता और उसके समर्थकों की अपनी महत्वाकांक्षाएं होती हैं, जिन्हें पूरा करना मुश्किल होता है।
संतुलन बनाना बड़ी चुनौती
पार्टी में शामिल हुए नए चेहरों और वर्षों से संगठन के लिए काम कर रहे पुराने कार्यकर्ताओं के बीच संतुलन बनाना महत्वपूर्ण होता है। यदि पुराने कार्यकर्ताओं को दरकिनार किया जाता है, तो उनमें असंतोष पनप सकता है। ऐसे में पार्टी ने फैसला किया है कि नेताओं की नियुक्तियों को लेकर समीक्षा की जाएगी। उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के पुत्र सांसद डॉ. श्रीकांत शिंदे के निर्देश पर समिति बनाई गई है। यह समिति जल्द ही नियुक्तियों को लेकर रिपोर्ट तैयार करेगी।
स्थानीय निकाय चुनावों को लेकर पेचीदगी
मनपा व जिला परिषद सहित विविध स्थानीय निकाय संस्थाओं के चुनाव की तैयारी के तहत शिवसेना में संगठन पुनर्गठन का कार्य चल रहा है। पार्टी के पूर्व विदर्भ समन्वयक व भंडारा के विधायक नरेंद्र भोंडेकर ने पिछले दिनों नागपुर, चंद्रपुर सहित अन्य जिलों में नियुक्तियां कीं। उनमें से कुछ नामों को लेकर असहमति सामने आई। कहा गया कि पार्टी के ऐसे लोगों को प्रमुख पद दिया जा रहा है, जिनका शिवसेना की विचारधारा से संबंध नहीं है। इस विषय को लेकर पूर्व मंत्री डॉ. दीपक सावंत के नेतृत्व में एक समिति बनाई गई है। समिति में वित्त राज्यमंत्री आशीष जैस्वाल, विधानपरिषद सदस्य कृपाल तुमाने, विदर्भ संगठक किरण पांडव का समावेश है।