पत्नी पति की संपत्ति नहीं

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Wife is not the property of husband

दिल्ली हाईकोर्ट ने द्रौपदी की कहानी सुनाई
नई दिल्ली.
दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि कोई भी महिला अपने पति की संपत्ति नहीं होती और उसे अपनी मर्जी से जीवन जीने का पूरा अधिकार है। हाई कोर्ट ने यह टिप्पणी एक पति के पत्नी पर व्यभिचार (अवैध संबंध) के आरोप वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। याचिका में शिकायतकर्ता पति ने अपनी पत्नी पर दूसरे युवक से अवैध संबंध रखने का आरोप लगाया था। पति का कहना था कि उसकी पत्नी अपने प्रेमी के साथ दूसरे शहर गई। वहां पूरी रात होटल के एक कमरे में रही। इस दौरान दोनों ने यौन संबंध भी बनाए।

कोर्ट ने पति की सोच को गलत बताया
दिल्ली हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई कर रहीं न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा ने अपने फैसले में महाभारत की द्रौपदी का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा “पांडव द्रौपदी को अपनी संपत्ति समझते थे। इसके चलते धर्मराज युधिष्ठिर उसे जुए में हार गए। द्रौपदी से उसकी इच्छा नहीं पूछी गई थी और उसके साथ जो अन्याय हुआ। उसने महाभारत जैसे विनाशकारी युद्ध को जन्म दिया।” हमारा समाज लंबे समय तक महिलाओं को पति की संपत्ति की तरह देखता रहा, लेकिन यह सोच गलत है। उन्होंने याद दिलाया कि 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने जोसफ शाइन बनाम भारत सरकार केस में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 (व्यभिचार) को असंवैधानिक करार दिया था। उस फैसले ने समाज को यह सोचने पर मजबूर किया कि महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए।

शिकायतकर्ता पति ने कोर्ट में लगाए थे ये आरोप
शिकायतकर्ता ने कोर्ट को बताया था कि उसकी पत्नी और उसका प्रेमी दूसरे शहर गए थे। जहां एक होटल में साथ रुके। इस दौरान उनके बीच शारीरिक संबंध बने। होटल में उन्होंने खुद को पति-पत्नी बताया। इस बारे में जब उसने अपनी पत्नी से बात की तो पत्नी ने कहा कि अगर उसे इस मामले से कोई दिक्कत है तो वह घर छोड़कर जा सकता है। हालांकि हाईकोर्ट ने एक ही कमरे में रुकने और यौन संबंध बनाने की बात मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि सिर्फ होटल में एक साथ रुकने से यह साबित नहीं होता है कि दोनों के बीच यौन संबंध बने।

शिकायत को खारिज किया
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायाधीश नीना बंसल कृष्णा ने कहा “किसी होटल में एक कमरा साझा करना यह साबित नहीं करता कि कुछ अनुचित हुआ है। केवल इसी आधार पर किसी पर आरोप नहीं लगाया जा सकता।” इस दौरान कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब किसी कानून को असंवैधानिक घोषित कर दिया जाता है तो उसका असर सभी पुराने और चल रहे मामलों पर भी लागू होता है। इसलिए धारा 497 अब लागू नहीं मानी जाती है। इसके साथ ही इस आधार पर कोई भी व्यक्ति अपराधी नहीं कहा जा सकता। इसके बाद अदालत ने महिला का प्रेमी बताए जा रहे आरोपी व्यक्ति को मामले से बरी कर दिया और शिकायत को खारिज कर दिया।

इतिहास में कई उदाहरण
जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने आगे कहा “एक महिला को अपनी संपत्ति समझने के इतिहास में कई उदाहरण मौजूद हैं। इसके चलते हमारे समाज की महिलाओं को तमाम मुश्किलों का सामना भी करना पड़ता है। हालांकि स्त्री-द्वेषी मानसिकता वाले लोगों को ये तभी समझ में आया। जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 497 IPC को असंवैधानिक घोषित कर दिया।” इसके बाद मामले को खारिज कर दिया गया।

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