‘शालार्थ आईडी’ के खुल रहे गहरे राज

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Deep secrets of 'Shalarath ID' are getting exposed

अदालत ने आरोपियों को जमानत नहीं दी
नागपुर.
नागपुर में ‘शालार्थ आईडी’ घोटाले ने शिक्षा के पवित्र क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की पोल खोल दी है। यह सिर्फ पैसे का घोटाला नहीं है, बल्कि यह हमारे युवाओं के भविष्य और शिक्षा व्यवस्था की विश्वसनीयता पर सीधा हमला है। इस मामले में माध्यमिक शिक्षा विभाग के संचालक से लेकर कई बड़े अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई है, जिससे यह साफ होता है कि यह भ्रष्टाचार की एक संगठित श्रृंखला थी।

बस एक को सशर्त जमानत
इस घोटाले में फर्जी शिक्षकों की नियुक्ति के आरोप में माध्यमिक शिक्षा विभाग के संचालक चिंतामण वंजारी की नियमित जमानत अर्जी तथा नागपुर शिक्षा विभाग के पूर्व उपनिदेशक सतीश मेंढे और जिला परिषद के वेतन पथक के अधीक्षक नीलेश वाघमारे की अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट ने खारिज कर दी है। हालांकि, नागपुर की पूर्व उपनिदेशक डॉ. वैशाली जामदार को सशर्त जमानत दे दी है।

145.88 करोड़ का घोटाला
इस घोटाले में 580 फर्जी शालार्थ आईडी बनाकर सरकारी खजाने को 145.88 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का आरोप है। यह पैसा गरीब छात्रों की शिक्षा, शिक्षकों के वेतन और स्कूलों के विकास पर खर्च किया जा सकता था, लेकिन कुछ भ्रष्ट अधिकारियों ने अपने निजी लाभ के लिए इसे लूट लिया। चिंतामण वंजारी जैसे अधिकारियों की जमानत याचिका खारिज होना यह दर्शाता है कि उनकी संलिप्तता कितनी गंभीर है। हालाँकि, डॉ. वैशाली जामदार को जमानत मिल गई, क्योंकि गिरफ्तारी की प्रक्रिया में खामियाँ पाई गईं, जो हमारी कानूनी प्रणाली में प्रक्रियात्मक पारदर्शिता की आवश्यकता को उजागर करता है।

सिस्टम के नैतिक पतन का प्रतीक
यह मामला हमें सोचने पर मजबूर करता है कि जब शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्र में ऐसे लोग बैठे हों, जो फर्जीवाड़े के माध्यम से अपनी जेबें भर रहे हों, तो हमारे देश का भविष्य कैसा होगा? यह घोटाला सिर्फ एक वित्तीय अनियमितता नहीं है, बल्कि यह हमारे सिस्टम के नैतिक पतन का प्रतीक है। सरकार को इस मामले की जड़ तक जाकर दोषियों को कड़ी से कड़ी सजा देनी चाहिए। साथ ही, शिक्षा विभाग में ऐसी प्रणाली स्थापित करनी चाहिए, जिससे भविष्य में ऐसे घोटालों की पुनरावृत्ति न हो।

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