मानसिक दबाव में छत से कूदा
मुंबई.
आईआईटी बॉम्बे के 26 वर्षीय छात्र रोहित सिन्हा की हॉस्टल की छत से गिरकर हुई संदिग्ध मौत ने संस्थान और उसके छात्रों के बीच बढ़ते मानसिक दबाव के मुद्दे को एक बार फिर से सामने ला दिया है। हालांकि पुलिस ने इसे शुरुआती जांच में एक दुर्घटना माना है, और संस्थान ने भी इसे दुखद घटना बताया है, लेकिन अन्य छात्रों का आत्महत्या का दावा और घटना के आसपास के हालात कई सवाल खड़े करते हैं।
प्रतिस्पर्धा का माहौल असहनीय
यह घटना हमें उच्च शिक्षा संस्थानों में छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति पर गंभीरता से विचार करने के लिए मजबूर करती है। आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाना अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है, लेकिन वहां का अकादमिक दबाव और प्रतिस्पर्धा का माहौल कई बार छात्रों के लिए असहनीय हो जाता है। पढ़ाई का बोझ, प्लेसमेंट का तनाव और सामाजिक अलगाव की भावना छात्रों को डिप्रेशन और मानसिक समस्याओं की ओर धकेल सकती है।
इस मौत पर सवाल
रोहित सिन्हा की मौत के मामले में, पुलिस द्वारा ‘एक्सीडेंटल डेथ रिपोर्ट’ दर्ज करना और कोई सुसाइड नोट न मिलना एक पहलू है, लेकिन यह भी सच है कि कई बार आत्महत्या के मामलों में भी सुसाइड नोट नहीं मिलते हैं। एक प्रत्यक्षदर्शी छात्र का दावा कि उसने रोहित को छत से कूदते हुए देखा, मामले को और भी जटिल बनाता है। संस्थान का यह दावा कि रोहित घटना के समय नशे में था, भी सवालों के घेरे में है, क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दे को भटकाने की कोशिश लग सकती है।
यह घटना एक अलार्म है
देश के सबसे प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में से एक में इस तरह की घटना का होना इस बात का संकेत है कि हम अपने छात्रों को केवल अकादमिक रूप से मजबूत बनाने पर ध्यान दे रहे हैं, उनके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर नहीं। संस्थानों को अपने परिसरों में मानसिक स्वास्थ्य परामर्श सेवाओं को मजबूत करना चाहिए। छात्रों को इस बात का भरोसा दिलाना चाहिए कि अगर वे किसी भी प्रकार के दबाव या समस्या का सामना कर रहे हैं, तो मदद मांगने में कोई शर्म नहीं है।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में ही असली खुलासा
जब तक पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट नहीं आ जाती, तब तक मौत की असली वजह का खुलासा नहीं होगा। लेकिन इस घटना से यह स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा संस्थानों को छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकता में रखना चाहिए। रोहित सिन्हा की मौत सिर्फ एक दुर्घटना नहीं है, बल्कि हमारी शिक्षा प्रणाली और सामाजिक संरचना पर एक गंभीर सवाल है, जिसे हम नजरअंदाज नहीं कर सकते।
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