भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई और गजेंद्र पाणतावणे ने दायर की है याचिका
नागपुर.
महाबोधि महाविहार के संपूर्ण प्रबंधन का अधिकार केवल बौद्धों को दिए जाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका पर 5 अगस्त को सुनवाई होगी। भदंत आर्य नागार्जुन सुरई ससाई और गजेंद्र पाणतावणे द्वारा दायर याचिका, जिसमें बोधगया मंदिर कानून को पूरी तरह से रद्द करने की मांग की गई है, संविधान के अनुच्छेद 13, 25, 26 और 29 के प्रावधानों पर आधारित है, जो धार्मिक स्वतंत्रता और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करते हैं।
स्वामित्व और नियंत्रण से जुड़ा मामला
यह मामला केवल एक मंदिर के प्रबंधन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बौद्ध धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक के स्वामित्व और नियंत्रण से जुड़ा है, जहाँ भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि जब अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि को मान्यता देते हुए बाबरी मस्जिद के लिए वैकल्पिक भूमि का आदेश दिया था, तो उसी तर्ज पर हिंदुओं को दूसरी जगह उपलब्ध कराकर महाबोधि महाविहार को बौद्धों के हवाले किया जाना चाहिए।
बौद्धों का यह मानना है
बोधगया मंदिर कानून, जिसमें मंदिर के प्रबंधन में गैर-बौद्धों की भागीदारी का प्रावधान है, लंबे समय से बौद्ध समुदाय के लिए एक विवाद का विषय रहा है। बौद्धों का मानना है कि उनके धार्मिक स्थलों का प्रबंधन उन्हीं के हाथों में होना चाहिए ताकि उनकी परंपराओं और मान्यताओं के अनुसार उसका संचालन हो सके। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो अन्य प्रमुख धर्मों के पवित्र स्थलों पर भी लागू होता है।
नजीर बनेगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट में 5 अगस्त को होने वाली अगली सुनवाई इस मामले में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकती है। यह केवल बौद्धों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों के संदर्भ में भी एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम कर सकती है। यह देखना होगा कि न्यायालय ऐतिहासिक संदर्भ, धार्मिक महत्व और संवैधानिक प्रावधानों के बीच कैसे संतुलन स्थापित करता है। इस मामले का निर्णय न केवल बोधगया मंदिर के भविष्य को आकार देगा, बल्कि भारत में धार्मिक सद्भाव और न्याय की व्यापक अवधारणा पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा।
