‘कुर्सी दिमाग में नहीं जानी चाहिए’

सीजेआई भूषण गवई की नसीहत
अमरावती.
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण गवई ने न्यायिक प्रणाली से जुड़े लोगों को एक अहम नसीहत दी है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा है कि “पद मिलने पर कई लोगों के दिमाग में कुर्सी चली जाती है, इससे बड़ा कोई पाप नहीं है।” यह टिप्पणी उन्होंने दर्यापुर में एक नए न्यायालय भवन के उद्घाटन समारोह में की, जहाँ उन्होंने जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायालय और दीवानी न्यायालय (वरिष्ठ स्तर) की नई इमारतों की आधारशिला का अनावरण किया।

मजिस्ट्रेटों के व्यवहार पर नाराजगी
न्यायमूर्ति गवई ने खास तौर पर कुछ युवा प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेटों के व्यवहार पर नाराजगी जताई, जो 40-50 साल से वकालत कर रहे वरिष्ठ वकीलों के साथ गलत तरीके से पेश आते हैं। उन्होंने एक घटना का जिक्र किया जिसमें एक न्यायाधीश ने एक कनिष्ठ वकील को इतनी डांटा कि वह अदालत में ही बेहोश हो गया। उन्होंने इस तरह के व्यवहार को अस्वीकार्य बताते हुए कहा, “अदालत का माहौल सौहार्दपूर्ण होना चाहिए। वकील और न्यायाधीश न्याय व्यवस्था के दो पहिये हैं। दोनों समान हैं। वकीलों के साथ बुरा व्यवहार करके यदि आप अपना अहंकार बनाए रख रहे हैं, तो वह आपका काम नहीं है।”

न्याय व्यवस्था लोकतंत्र की जान
मुख्य न्यायाधीश ने इस बात पर जोर दिया कि न्याय व्यवस्था लोकतंत्र की जान है और न्याय का कार्य संविधान को आदर्श मानकर किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अनुभव बहुत महत्वपूर्ण है और न्यायाधीशों तथा वकीलों के बीच संबंध सौहार्दपूर्ण होने चाहिए। अपने गृहनगर दर्यापुर में इस आयोजन को लेकर न्यायमूर्ति गवई ने विशेष खुशी व्यक्त की। उन्होंने कहा, “मैं इस कार्यक्रम में सरन्यायाधीश के रूप में नहीं बल्कि एक ग्रामीण के रूप में आया हूं।” उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि इस नई और सुसज्जित न्यायालयीन इमारत से ग्रामीण क्षेत्र के नागरिकों को जल्द न्याय मिलेगा, और यह भी दोहराया कि न्यायदान का कार्य बिना किसी पूर्वाग्रह के करना होता है, इसलिए यह वास्तव में एक पवित्र कार्य है।

Comments

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

More posts