पति को यौनसुख से वंचित रखना भी तलाक का आधार

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Depriving the husband of sexual pleasure is also a ground for divorce

बॉम्बे हाईकोर्ट का अहम फैसला
मुंबई.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में वैवाहिक संबंधों की जटिलताओं पर प्रकाश डाला है। अदालत ने एक महिला की तलाक के खिलाफ दायर याचिका को खारिज करते हुए पुणे की पारिवारिक अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है, जिसमें पति को यौन सुख से वंचित रखने को क्रूरता का आधार मानकर तलाक की मंजूरी दी गई थी। यह निर्णय उन मामलों में एक मिसाल कायम करता है जहां एक साथी द्वारा जान-बूझकर यौन संबंध बनाने से इनकार करना वैवाहिक बंधन के टूटने का कारण बनता है।

यह है पूरा मामला
यह मामला 2013 में शादी करने वाले एक जोड़े से संबंधित है, जो दिसंबर 2014 में अलग रहने लगे थे। पति ने 2015 में क्रूरता के आधार पर तलाक की मांग की थी, जिसमें पत्नी पर शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करने, अवैध संबंधों का झूठा शक करने और दोस्तों, रिश्तेदारों व कर्मचारियों के सामने अपमानित कर मानसिक पीड़ा पहुंचाने जैसे आरोप लगाए गए थे। पति ने यह भी दावा किया कि पत्नी का उसकी दिव्यांग बहन के प्रति असंवेदनशील और उदासीन व्यवहार भी परिवार के लिए एक बड़ा मानसिक आघात था।

यह आचरण क्रूरता की श्रेणी में
जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने स्पष्ट रूप से कहा कि पत्नी का यह आचरण पति के प्रति क्रूरता माना जा सकता है। हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान माना कि पत्नी का रवैया न केवल पति को मानसिक रूप से परेशान करने वाला था, बल्कि उसने सार्वजनिक रूप से उसका अपमान भी किया, जिससे पति के आत्मसम्मान को चोट पहुंची। कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि पति-पत्नी के रिश्ते में अब सुधार की कोई गुंजाइश नहीं बची है और विवाह पूरी तरह से टूट चुका है। यह फैसला आधुनिक समाज में वैवाहिक संबंधों की बदलती गतिशीलता और व्यक्तिगत सम्मान व भावनात्मक कल्याण के महत्व को रेखांकित करता है। यह उन जोड़ों के लिए एक चेतावनी भी है जो अपने जीवनसाथी को भावनात्मक या शारीरिक रूप से उपेक्षित करते हैं।

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