स्वच्छता रैंकिंग में 27वें स्थान पर नागपुर

 ‘सच्चाई’ को आंकड़ों में उलझाया
नागपुर.
केंद्रीय सरकार द्वारा जारी नवीनतम स्वच्छता रैंकिंग में नागपुर शहर का 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में 27वें स्थान पर बने रहना, और 3 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में 52वें क्रम पर आना बहुत कुछ कह देता है। अंकों में 10% का इजाफा निश्चित रूप से कुछ हद तक संतोषजनक है, लेकिन रिपोर्ट के भीतर छिपी विसंगतियां प्रशासनिक लापरवाही और शहर की वास्तविक स्वच्छता स्थिति पर गंभीर सवाल उठाती हैं।

अंक और हकीकत के बीच की खाई
रिपोर्ट के अनुसार, नागपुर को कचरा प्रक्रिया, इलाकों की स्वच्छता, बाजार स्वच्छता और यहाँ तक कि नदी-तालाबों की स्वच्छता में 100 में से 100 प्रतिशत अंक दिए गए हैं। यह आँकड़े तब और भी चौंकाने वाले लगते हैं, जब शहर की वास्तविक स्थिति पर नज़र डाली जाती है। स्वयं केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी नाग नदी, पीली और पोहरा नदी में भरे कचरे को लेकर फटकार लगा चुके हैं। इलाकों और बाजारों में गंदगी की तस्वीरें रोज़ सामने आती हैं, और सार्वजनिक शौचालयों की हालत भी दयनीय है, जहाँ लोग जाना पसंद नहीं करते।

मूल्यांकन पद्धति पर संदेह
सबसे बड़ा विरोधाभास गीले-सूखे कचरा विलगीकरण में मिला सिर्फ 1 प्रतिशत अंक और डोर-टू-डोर कलेक्शन में मिले 30 प्रतिशत अंक में है। पिछले साल इन्हीं श्रेणियों में नागपुर को 90 प्रतिशत से अधिक अंक मिले थे। यह कैसे संभव है कि एक साल में शहर का प्रदर्शन इन महत्वपूर्ण मापदंडों पर इतना गिर जाए, जबकि कचरा संग्रहण के लिए 850 वाहन जीपीएस के साथ चल रहे हों और कई इलाकों में तीन श्रेणियों में कचरा संकलन का प्रयोग सफल रहा हो? यह सीधे तौर पर मूल्यांकन पद्धति पर संदेह पैदा करता है, या फिर यह दर्शाता है कि प्रशासनिक स्तर पर कहीं न कहीं गंभीर चूक हुई है।

प्रशासनिक जवाबदेही की आवश्यकता
यह रिपोर्ट न केवल नागपुर की स्वच्छता रैंकिंग पर, बल्कि नागपुर महानगरपालिका की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करती है। 1200 मीट्रिक टन कचरे में से केवल 250 मीट्रिक टन पर ही प्रक्रिया हो पाने के बावजूद कचरा प्रक्रिया’ में 100 प्रतिशत अंक देना रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लगाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि रिपोर्ट में कुछ मापदंडों पर आँखें मूंद ली गई हैं, या फिर स्थानीय स्तर पर सही जानकारी प्रस्तुत नहीं की गई है। नागपुर की वास्तविक स्वच्छता को सुधारने के लिए, महानगरपालिका को इन विसंगतियों का गंभीरता से विश्लेषण करना चाहिए। सिर्फ़ अंकों के पीछे भागने के बजाय, उसे ज़मीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है।

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