राज ठाकरे कोई ‘रिस्क’ नहीं लेना चाहते

भाषा विवाद के बीच पार्टी के नेताओं को दी सख्त हिदायत
मुंबई.
महाराष्ट्र में मराठी भाषा के मुद्दे पर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) और शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट की एकजुटता ने राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया है। हाल ही में मीरा-भायंदर में दोनों दलों ने संयुक्त आंदोलन किया, जिससे मराठी विरुद्ध गैर-मराठी विवाद और गहरा गया। इस बीच अब मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने अपनी पार्टी के नेताओं को सख्त निर्देश देते हुए कहा है कि वे बिना उनकी अनुमति के किसी भी प्रकार से मीडिया या सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया व्यक्त न करें।

व्यक्तिगत राय से मनाही
राज ठाकरे ने मंगलवार देर रात एक्स पर एक पोस्ट में स्पष्ट कहा कि मनसे का कोई भी नेता अब किसी भी अखबार, न्यूज चैनल या डिजिटल माध्यम से संवाद नहीं करेगा। इसके साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोई नेता अपने व्यक्तिगत वीडियो या प्रतिक्रिया सोशल मीडिया पर भी पोस्ट नहीं करेगा। इतना ही नहीं, जिन प्रवक्ताओं को पार्टी की ओर से मीडिया में बोलने की अधिकृत जिम्मेदारी दी गई है, वे भी अब राज ठाकरे की अनुमति के बिना कोई बयान नहीं दे सकेंगे।

अब गठबंधन की होने लगी बात
राज ठाकरे का यह सख्त रवैया ऐसे समय में सामने आया है जब उनकी पार्टी मनसे और उनके चचेरे भाई उद्धव ठाकरे कि शिवसेना (उबाठा) के संभावित गठबंधन की चर्चाएं जोर पकड़ रही हैं। पिछले हफ्ते मुंबई के वर्ली में आयोजित ‘आवाज मराठीचा’ कार्यक्रम के दौरान दोनों नेताओं का दो दशक बाद एक साथ मंच साझा करना राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसके बाद दोनों खेमों के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं ने सार्वजनिक रूप से इस मनसे और शिवसेना यूबीटी गठबंधन की मांग की है।

इस कारण फूंक-फूंक कर कदम
माना जा रहा है कि राज ठाकरे नहीं चाहते कि इस विषय पर अनावश्यक बयानबाजी हो या किसी तरह की भ्रम की स्थिति बने, इसलिए उन्होंने पार्टी नेताओं पर मीडिया से रूबरू होने पर रोक लगा दी है। साथ ही, मराठी और गैरमराठी विवाद पर मनसे नेताओं के तीखे तेवर भी हाल के दिनों में चर्चा में रहे हैं। सियासी गलियारों में चर्चा यह भी है कि पार्टी की छवि को नुकसान न हो और अनुशासन बनी रहे, इस मकसद से भी ठाकरे ने यह निर्देश दिया है। हालांकि, आने वाले दिनों में पता चलेगा कि मनसे प्रमुख के इस मीडिया मौन फरमान के पीछे क्या रणनीति है।

चुनावी माहौल में मराठी अस्मिता का मुद्दा गरमाया
गौरतलब है कि मुंबई महानगरपालिका चुनाव की घोषणा कुछ ही दिनों में हो सकती है। ऐसे में मराठी अस्मिता के नाम पर उठाया गया भाषा का मुद्दा राजनीतिक दृष्टिकोण से काफी अहम हो गया है। महाराष्ट्र के 29 नगर निगमों, 248 नगर परिषदों, 32 जिला परिषदों और 336 पंचायत समितियों के चुनाव इस वर्ष के अंत में या अगले वर्ष की शुरुआत में होने वाले हैं।

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