बोले किसान- हम गांजा-अफीम की खेती के लिए मजबूर

खेतों में भाजपा के झंडे, बच्चू कडू कर रहे हैं पदयात्रा
अमरावती.
अमरावती में प्रहार जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व राज्य मंत्री बच्चू कडू के नेतृत्व में चल रही 138 किलोमीटर की पदयात्रा के दौरान किसानों ने अपने खेतों में भाजपा के झंडे लगाकर और होर्डिंग्स लगाकर अपना विरोध दर्ज कराया है। इन होर्डिंग्स में व्यंग्यात्मक रूप से यह दर्शाया गया है कि किसान गांजा और अफीम जैसी फसलें उगाने को मजबूर हो सकते हैं, क्योंकि सरकार उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दे रही है।

किसानों का आक्रोश और आर्थिक संकट
किसानों का यह विरोध प्रदर्शन उनके गहरे आर्थिक संकट का परिणाम है। फसल बुआई बंद होने, कर्जमाफी के वादों के पूरा न होने और अन्य समस्याओं के चलते किसान हताश हैं। सुकाली के किसानों द्वारा खेतों में भाजपा के झंडे लगाना और व्यंग्यात्मक होर्डिंग्स लगाना यह दर्शाता है कि वे सरकार के प्रति अपना गुस्सा खुलकर जाहिर कर रहे हैं। इन होर्डिंग्स में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और अजित पवार की बैलगाड़ी पर बैठी तस्वीर के साथ यह संदेश दिया गया है कि “अब बुआई बंद है, गरीब लोगों की जान के खिलाफ उठ खड़े हुए सरदारों के पास अब गांजा, अफीम की फसल है या फिर पार्टी के झंडे।” यह सीधे तौर पर सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है और किसानों की दयनीय स्थिति को उजागर करता है।

कर्जमाफी पर सवाल
किसानों की सबसे बड़ी मांगों में से एक कर्जमाफी है। खबर में बताया गया है कि सरकार ने कर्जमाफी का वादा किया था, लेकिन इसे लागू करने में लगातार देरी हो रही है। किसानों का आरोप है कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस जब “लड़की बहन योजना” लाए थे, तब कोई समिति नहीं बनाई गई थी, तो फिर किसानों को कर्जमाफी देने के लिए समिति क्यों बनाई जा रही है? किसान सीधे तौर पर कर्जमाफी की घोषणा की मांग कर रहे हैं, ताकि उन्हें तुरंत राहत मिल सके। समिति बनाने की प्रक्रिया को वे टालमटोल और अनावश्यक देरी के रूप में देख रहे हैं।

गांजा और अफीम का जिक्र: हताशा का प्रतीक
होर्डिंग्स में गांजा और अफीम की फसल का जिक्र किसानों की चरम हताशा और बेबसी को दर्शाता है। यह एक प्रतीकात्मक संदेश है कि जब पारंपरिक फसलें लाभहीन हो जाती हैं और सरकार से कोई मदद नहीं मिलती, तो किसान अवैध और जोखिम भरी फसलों की ओर मुड़ने को मजबूर हो सकते हैं। यह उनके लिए एक आखिरी सहारा जैसा है, जो यह बताता है कि वे कितनी गंभीर आर्थिक तंगी से गुजर रहे हैं।

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