ट्रंप के नहले पर मोदी का दहला

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नई दिल्ली.
भारत और अमेरिका के रिश्तों में एक बार फिर जबरदस्त हलचल देखने को मिल रही है। इस बार मुद्दा राजनीति का नहीं व्यापार का है। भारत ने अमेरिकी कृषि उत्पादों को अपने बाजार में ब्लॉक कर दिया है, जिससे अमेरिका की कृषि कंपनियों में जबरदस्त हड़कंप मच गया है। खासकर अमेरिका के सेब, बादाम, सोयाबीन और डेयरी उत्पादों को लेकर भारत के इस फैसले ने अमेरिकी अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका दिया है। अमेरिकी कॉमर्स सेक्रेटरी हावर्ड लॉटनिक ने हाल ही में दावा किया कि भारत ने अमेरिकी किसानों के उत्पादों को अपने बाजार में आने से रोक दिया है। ये खबर अमेरिका के लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं हैं।
यह कब्जे की रणनीति
दरअसल, भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार कोई नया मामला नहीं है। भारत हर साल अमेरिका से करीब 1 अरब 50 करोड़ डॉलर के कृषि उत्पाद खरीदता था। इसमें 700 मिलियन डॉलर के बादाम, 500 मिनियन डॉलर के डेयरी प्रोडक्ट और 200 मिलियन डॉलर के सेब और अंगूर प्रमुख रूप से शामिल थे, लेकिन अमेरिका ने हमेशा एक चालाकी भरी रणनीति अपनाई। वे भारत को हमेशा वो उत्पाद नहीं बेचता था, जिनकी हमें जरूरत होती थी। बल्कि अपनी बड़ी कंपनियों की ब्रांडिंग के जरिए भारतीय बाजार में उन्हीं उत्पादों को बेचने की कोशिश करता था जो भारत में पहले से ही मौजूद हैं। जैसे बादाम, अखरोट और सेब भारत में बड़े पैमाने पर उगाए जाते हैं। लेकिन अमेरिकी ब्रांड इनकी हाई क्वालिटी बताकर भारतीय बाजार में कब्जा कर रहे थे।
अमेरिका को ये बात चुभ गई
पीएम मोदी ने आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की थी। इसका सीधा असर ये हुआ कि भारत ने विदेशी कृषि उत्पादों पर टैक्स बढ़ाना शुरू कर दिया, ताकि भारतीय किसानों को नुकसान न हो। इसके चलते भारत ने अमेरिकी कृषि उत्पादों पर 100 प्रतिशत टैरिफ बढ़ा दिया। अमेरिकी सेब और बादाम पर इंफोर्ट ड्यूटी बढ़ा दी गई। डेयरी प्रोडक्ट के लिए कड़े नियम लागू कर दिए गए। अमेरिका को ये बात चुभ गई। 2023 में भारत ने अमेरिका को 87 अरब डॉलर का सामान बेचा था। बदले में अमेरिका से सिर्फ 41 अरब डॉलर का सामान खरीदा था। इसका मतलब भारत ने अमेरिका से 46 अरब डॉलर ज्यादा कमाए। जब अमेरिका को लगा कि उसका व्यापार घाटे में जा रहा है तो उसने वर्ल्ड ट्रेड आर्गेनाइजेशन में शिकायत दर्ज करा दी।

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