जिला परिषद सर्कल रचना पर सुनवाई पूरी
नागपुर.
जिला परिषद के सर्कल रचना को लेकर मिली 53 आपत्तियों और सुझावों पर विभागीय आयुक्त विजयलक्ष्मी बिदरी ने सुनवाई पूरी कर ली है। अधिकांश आपत्तियां सर्कल से कम हो रहे क्षेत्रों को लेकर थीं, जबकि कई स्थानीय नेताओं ने अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों को बचाने के सुझाव दिए। पिछले पांच वर्षों में कई गांवों को नगर पंचायत और नगर परिषद का दर्जा मिलने के कारण इस बार जिला परिषद सदस्यों की संख्या 58 से घटकर 57 हो जाएगी। नागपुर जिला परिषद की चुनावी राजनीति में यह बदलाव एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जिसका सीधा असर स्थानीय चुनाव पर पड़ना तय है। सर्कलों की पुनर्रचना और सीटों की संख्या में कमी से आने वाले चुनाव का समीकरण पूरी तरह से बदल सकता है।
राजनीतिक समीकरणों में बदलाव
जब सर्कलों की सीमाएं बदलती हैं, तो मतदाता आधार भी बदल जाता है। किसी नेता के प्रभाव वाले क्षेत्र में नए गांव जुड़ सकते हैं या पुराने गांव हट सकते हैं, जिससे उसके वोट बैंक पर सीधा असर पड़ेगा। जो नेता अब तक अपने प्रभाव के दम पर जीतते आए हैं, उन्हें नए क्षेत्रों में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए अतिरिक्त मेहनत करनी पड़ेगी। वहीं, कम आबादी वाले गांवों को जोड़कर नए सर्कल बनाने से भी चुनावी गणित बदल जाएगा।
नेताओं के लिए नई चुनौतियां
58 से 57 सीटों का घटना, भले ही संख्या में एक लगे, लेकिन इसका राजनीतिक महत्व बहुत ज्यादा है। एक सीट का कम होना मतलब एक प्रमुख नेता के लिए अपनी दावेदारी खोने का खतरा। इसके चलते, विभिन्न राजनीतिक दलों में टिकट के लिए होड़ और भी तेज हो जाएगी। नेताओं को अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों को बचाने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी।
प्रशासनिक निर्णय का महत्व
संभागीय आयुक्त का फैसला इस पूरे मामले में निर्णायक होगा। उनकी तरफ से सर्कलों की अंतिम रचना पर मुहर लगते ही, स्थानीय चुनाव आयोग आगे की प्रक्रिया शुरू करेगा। यह निर्णय राजनीतिक रूप से बहुत संवेदनशील होगा क्योंकि यह सीधे तौर पर कई नेताओं के भविष्य को प्रभावित करेगा। जिन नेताओं ने अपनी आपत्ति दर्ज कराई है, वे आयुक्त के फैसले पर बारीकी से नजर रखेंगे। अगर उनकी आपत्तियों को स्वीकार नहीं किया जाता है, तो वे कानूनी विकल्पों पर भी विचार कर सकते हैं।
क्षेत्रीय असंतोष
कई आपत्तियां उन क्षेत्रों से आई हैं जहाँ के गांव को एक सर्कल से हटाकर दूसरे में मिला दिया गया है। ऐसे में, यदि अंतिम निर्णय इन आपत्तियों के खिलाफ जाता है, तो इन क्षेत्रों में स्थानीय नेताओं और जनता के बीच असंतोष पैदा हो सकता है। यह असंतोष चुनाव में वोटिंग पैटर्न को प्रभावित कर सकता है। कुल मिलाकर, यह पूरी प्रक्रिया सिर्फ एक प्रशासनिक बदलाव नहीं है, बल्कि एक राजनीतिक कवायद है जो नागपुर जिला परिषद के आने वाले चुनाव का पूरा खाका बदल देगी। नेताओं की नजर अपने-अपने प्रभाव वाले क्षेत्रों को बचाने पर टिकी है और आयुक्त का फैसला ही यह तय करेगा कि किसे इसका फायदा मिलता है और किसे नुकसान।
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