दंपति को पीटने वाले पुलिस अधिकारियों को राहत नहीं

हाईकोर्ट ने कड़ी कार्रवाई का निर्देश दिया
गडचिरोली.
बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ ने पुलिस अधिकारियों को झटका देते हुए गडचिरोली में एक दंपति के साथ मारपीट करने के मामले में कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने कहा कि केवल पुलिस अधिकारी होने के आधार पर उन्हें संरक्षण नहीं दिया जा सकता। न्यायमूर्ति उर्मिला जोशी-फालके ने गडचिरोली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के उस आदेश को सही ठहराया, जिसमें पुलिस की ‘बी-समरी’ रिपोर्ट को खारिज कर दिया गया था और आरोपी अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने का निर्देश दिया गया था।

शिकायत दर्ज कराने गए थे
यह मामला 20 मार्च 2018 का है, जब रोहिणी मडावी और उनके पति गडचिरोली के पेंढारी पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज कराने गए थे। रोहिणी ने आरोप लगाया कि पुलिस अधिकारी शशिकांत लोंढे ने उन्हें शिकायत दर्ज न करने की सलाह दी और बाद में उनके और उनके पति के साथ गाली-गलौज और जातिसूचक टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके पति को बेल्ट से मारा गया और उन्हें थप्पड़ मारे गए, जिसके बाद उन्हें पुलिस स्टेशन से बाहर निकाल दिया गया। मेडिकल जांच में दंपति के शरीर पर चोटें पाई गईं, और गवाहों के बयानों ने भी उनके दावों का समर्थन किया।

कोर्ट ने तर्क को खारिज कर दिया
पुलिस ने अपनी जांच में आरोपों को निराधार बताते हुए ‘बी-समरी’ रिपोर्ट पेश की, लेकिन अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने इसे खारिज कर दिया। पुलिस अधिकारियों ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती देते हुए कहा कि उन्होंने अपने आधिकारिक कर्तव्यों का पालन किया था और उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकारी मंजूरी की जरूरत थी। हालांकि, कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि हमला और अपमान उनके आधिकारिक कर्तव्यों से संबंधित नहीं था, इसलिए मंजूरी की जरूरत नहीं है। इस फैसले ने पुलिस की मनमानी पर लगाम लगाने और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है।

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