‘स्व’ पर भागवत को जोर, आत्मनिर्भरता की ओर

आरएसएस प्रमुख ने कहा- सभी प्रकार के बल में वृद्धि होनी चाहिए
नागपुर.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ वॉर की घोषणा के बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का नागपुर में ‘आत्मनिर्भर भारत’ पर दिया गया बयान सामयिक और महत्वपूर्ण है। उनका यह कथन कि “हमें अपने बल पर प्रगति करनी होगी” और “सभी प्रकार के बल में वृद्धि होनी चाहिए” वर्तमान वैश्विक परिस्थितियों में भारत की विदेश और आर्थिक नीति के लिए एक स्पष्ट दिशा-निर्देश प्रस्तुत करता है।

मैकाले के शिक्षा मॉडल को किया खारिज
भागवत ने जोर देकर कहा कि आत्मनिर्भरता के लिए हमें अपने “स्व” को समझना होगा। यह केवल आर्थिक स्वावलंबन की बात नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक और बौद्धिक स्वावलंबन की भी है। जब तक हम अपने स्वत्व पर दृढ़ थे, तब तक भारत विश्व में अग्रणी था, लेकिन जब हमने इसे खोया, तो हमारा पतन शुरू हो गया। यह एक ऐतिहासिक सत्य है कि विदेशी आक्रांताओं और विशेषकर अंग्रेजों ने हमारी अर्थव्यवस्था के साथ-साथ हमारी शिक्षा और बुद्धि को भी गुलाम बनाने का काम किया। मैकाले के शिक्षा मॉडल को खारिज करते हुए भागवत ने जिस तरह से ‘स्व’ की पहचान को — से जोड़ा, वह एक गहरी सोच का परिचायक है।

‘जनाश्रय’ और ‘राजाश्रय’ दोनों की आवश्यकता
आज जब पूरी दुनिया व्यापार युद्धों और संरक्षणवाद की ओर बढ़ रही है, भारत के लिए अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना और अपनी शक्ति को बढ़ाना अत्यंत आवश्यक है। यह केवल टैरिफ और व्यापार समझौतों तक सीमित नहीं है। यह सैन्य, आर्थिक, तकनीकी और सांस्कृतिक रूप से मजबूत बनने का आह्वान है। भागवत ने संस्कृत भाषा के महत्व पर भी जोर दिया, जिसे उन्होंने ‘स्व’ को अभिव्यक्त करने का साधन और सभी भारतीय भाषाओं की जननी बताया। उनका यह मानना कि संस्कृत को ‘जनाश्रय’ और ‘राजाश्रय’ दोनों की आवश्यकता है, हमारी सांस्कृतिक जड़ों को फिर से मजबूत करने की एक पहल है।

‘वसुधैव कुटुंबकम्’ का नया रूप
भागवत का यह बयान भारत को केवल एक बाजार के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और मजबूत सभ्यता के रूप में स्थापित करने का दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। आत्मनिर्भरता का यह मॉडल दुनिया के लिए ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के भारतीय विचार को प्रस्तुत करने का एक नया तरीका हो सकता है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या हम पश्चिमी विचारों के अनुकरण को छोड़कर अपने स्वयं के विकास के मॉडल को विकसित करने के लिए तैयार हैं। यह एक ऐसा विचार है जो न केवल हमारे आर्थिक भविष्य को सुरक्षित करेगा, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूती प्रदान करेगा।

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