उद्धव ज्यादा बेकरार, राज मुगालते में नहीं

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Uddhav is very anxious, Raj is not under any illusion

राजनीतिक हथियार बनाने के लिए ‘एकाकार’ होने का स्वांग
मुंबई.
शिवसेना (यूबीटी) के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र की राजनीति में अपनी प्रासंगिकता बनाए रखना चाहते हैं। वह जानते हैं कि वर्तमान परिस्थितियों में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की जोड़ी के सामने वह अकेले किसी भी हथियार का उपयोग करके मुंबई मनपा पर जीत हासिल नहीं कर सकते। इसके लिए अब उन्हें अपने उसी चचेरे भाई के साथ की अपेक्षा है, जिसे पिछले 20 साल से वह फूटी आंखों में देखना नहीं चाहते थे।

महाराष्ट्र के हित के लिए दोनों भाई साथ
दरअसल, फिल्म निर्माता-निर्देशक महेश मांजरेकर को साक्षात्कार देते समय राज ठाकरे ने कहा था कि महाराष्ट्र के हित के लिए हम पारिवारिक झगड़ा भी भुलाने को तैयार हैं। इस बात को उद्धव ठाकरे ने तुरंत लपक लिया, और उसी दिन चल रही अपनी एक सार्वजनिक सभा में यह प्रस्ताव दे डाला कि वह भी महाराष्ट्र के हित में किसी से भी हाथ मिलाने को तैयार हैं। बशर्ते वह यह तय करे कि वह महाराष्ट्र द्रोहियों के साथ उठना-बैठना बंद करेगा। ‘किसी से भी’ से उनका आशय राज ठाकरे से, और ‘महाराष्ट्रद्रोही’ से उनका आशय उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से था।

एक सुर में बोल रहे दोनों भाई
उद्धव के इस प्रस्ताव पर राज ठाकरे का कोई जवाब नहीं आया, लेकिन उद्धव गुट के प्रवक्ता संजय राउत और स्वयं उद्धव ठाकरे भी तब से बार-बार राज ठाकरे को लुभाने की कोशिश करते आ रहे हैं। संयोग से इसी दौरान राज्य सरकार के शिक्षा विभाग ने प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की शिक्षा अनिवार्य करने का आदेश जारी कर दिया। राज ठाकरे की ओर से इस पर तीखी प्रतिक्रिया आनी शुरू हुई तो उद्धव ने भी उनके सुर में सुर मिला दिया। जबकि स्वयं उन्हीं के मुख्यमंत्री रहते माशेलकर समिति बनाई गई थी, जिसने 12वीं कक्षा तक हिंदी का पठन-पाठन अनिवार्य करने की सिफारिश की थी।

निर्णय के विरोध में रैली
फिर जब सरकार के इस निर्णय के विरोध में राज ठाकरे ने आंदोलन की घोषणा की, तो उद्धव ने भी मोर्चा निकालने की घोषणा कर दी। लेकिन इन दोनों के मोर्चे निकलने के पहले ही सरकार ने नया आदेश निकालकर प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी की अनिवार्यता समाप्त कर दी। तो सरकार के इस निर्णय को मराठी की विजय प्रदर्शित करते हुए उद्धव और राज दोनों ने पांच जुलाई को विजय रैली करने की घोषणा कर दी।

उद्धव गुट गठबंधन मान रहा है
अब उद्धव ठाकरे की ओर से बार-बार यह जताने की कोशिश की जा रही है, जैसे अब राज ठाकरे की मनसे के साथ उनका गठबंधन हो ही गया हो। राजनीतिक गठबंधन को लेकर फिलहाल राज ठाकरे की उदासीनता बता रही है कि वह 20 साल पहले शिवसेना में अपने साथ हुए व्यवहार को भूले नहीं हैं। उदासीनता का दूसरा कारण यह भी है कि अभी स्थानीय निकाय चुनावों में तीन-चार महीने बाकी हैं। तब तक महाराष्ट्र की राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, इसका अनुमान अभी से लगाना किसी के लिए भी मुश्किल ही होगा। इसलिए उद्धव ठाकरे अपनी तरफ से कोई भी संकेत देते रहें, उसे राज की ‘हां’ तो कतई नहीं समझा जा सकता।

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