संपत्तियों से जुड़ी जानकारी छुपाने का मामला
नागपुर.
नागपुर के हिंगना उप-पंजीयक कार्यालय में करोड़ों की संपत्तियों से जुड़ी जानकारी छुपाने का मामला आया है। यह प्रशासनिक और वित्तीय प्रणाली में व्याप्त गंभीर खामियों को दर्शाता है। आयकर विभाग की इंटेलिजेंस एंड क्रिमिनल इन्वेस्टिगेशन विंग द्वारा किए गए इस सर्वे ने न केवल बड़े पैमाने पर कर चोरी का खुलासा किया है, बल्कि यह भी साबित कर दिया है कि भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं।
सुनियोजित आपराधिक कृत्य
नियमों के अनुसार, ₹30 लाख से अधिक की संपत्ति के पंजीकरण की जानकारी आयकर विभाग को देना अनिवार्य है। लेकिन इस मामले में ₹30 करोड़ और यहाँ तक कि ₹100 करोड़ के लेन-देन को भी जान-बूझकर छिपाया गया। यह केवल लापरवाही नहीं, बल्कि एक सुनियोजित आपराधिक कृत्य है। इससे न केवल संपत्ति की वास्तविक कीमत को कम दिखाया गया, बल्कि काला धन भी खपाया गया। यह सीधा-साधा मामला है कि अधिकारियों ने खरीदारों को कर से बचाने और नकद लेन-देन को बढ़ावा देने के लिए अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया।
21 उप-पंजीयक कार्यालय रडार पर
इस घोटाले का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि यह केवल एक कार्यालय तक सीमित नहीं है। आयकर विभाग की नजर अब नागपुर के सभी 21 उप-पंजीयक कार्यालयों पर है, और यह आशंका है कि यह आंकड़ा ₹2,000 करोड़ तक पहुंच सकता है। यह दर्शाता है कि यह कोई अकेली घटना नहीं है, बल्कि एक व्यापक भ्रष्टाचार का हिस्सा है। इस मामले में संपत्ति डीलरों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स की संदिग्ध भूमिका भी जांच के दायरे में है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि कर चोरी का यह जाल कितनी दूर तक फैला हुआ है।
व्यवस्था में सुधार जरूरी
इस तरह के घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है। केवल जांच और गिरफ्तारी ही पर्याप्त नहीं है। हमें पूरी व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। रजिस्ट्री कार्यालयों में पारदर्शिता बढ़ाने, डिजिटल निगरानी को मजबूत करने और दोषी अधिकारियों के खिलाफ त्वरित और कठोर कार्रवाई करने की जरूरत है। यह मामला एक सबक है कि जब तक हम भ्रष्टाचार के इन गढ़ों को ध्वस्त नहीं करेंगे, तब तक ईमानदार करदाताओं के साथ अन्याय होता रहेगा और देश को राजस्व का नुकसान होता रहेगा।
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