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  • सोनिया- राहुल ने शरद पवार के साथ मिलकर रची थी साजिश

    सोनिया- राहुल ने शरद पवार के साथ मिलकर रची थी साजिश

    मालेगांव केस में आए फैसले के बाद समीर कुलकर्णी का आरोप
    मुंबई.
    मालेगांव विस्फोट मामले में सभी आरोपियों के बरी होने के बाद, समीर कुलकर्णी ने खुलकर अपनी बात रखी है। उन्होंने इस फैसले को न्याय की जीत बताया और आरोप लगाया कि 2009 के आम चुनावों को प्रभावित करने के लिए तत्कालीन यूपीए सरकार, जिसमें कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार भी शामिल थे, ने “भगवा ध्वज को बदनाम करने” की साजिश रची थी।

    राजनीतिक साजिश का पर्दाफाश
    कुलकर्णी ने इस फैसले को “राजनीतिक साजिश” का पर्दाफाश बताया, जिसका उद्देश्य देशभक्तों और धार्मिक हस्तियों की छवि को खराब करना था। उनके साथ, पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सात अन्य आरोपी भी इस मुकदमे में शामिल थे, जिन्हें अब बरी कर दिया गया है। 17 साल के इंतजार के बाद आए इस फैसले को कुलकर्णी ने भारत की स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायपालिका पर अपने विश्वास की पुष्टि बताया। उन्होंने आरोप लगाया कि जांच “सरकार के दबाव में” की गई थी, जिसके कारण पहली बार “देशभक्तों, धार्मिक लोगों और संतों को आतंकवादी” कहा गया।

    देशभक्त को बताया था देशद्रोही
    कुलकर्णी ने कांग्रेस पर “हमारे विश्वास के प्रतीक, पवित्र भगवा और हिंदू शब्दों को वैश्विक मंच पर बदनाम” करने का आरोप लगाया। उन्होंने स्पष्ट रूप से शरद पवार, दिग्विजय सिंह, सुशील कुमार शिंदे, शिवराज पाटिल, शकील अहमद पटेल, सोनिया गांधी और राहुल गांधी को 2009 के आम चुनाव को ध्यान में रखकर इस साजिश का मुख्य आरोपी ठहराया। कुलकर्णी ने लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित के साथ हुए व्यवहार की भी कड़ी निंदा की, यह कहते हुए कि एक कर्तव्यनिष्ठ सैन्य अधिकारी, जिसने देश की सेवा की, उसे आरोपी बनाया गया और उसके जीवन के 17 साल बर्बाद कर दिए गए।

  • मालेगांव ब्लास्ट : 17 साल बाद फैसला, सभी 7 आरोपी बरी

    मालेगांव ब्लास्ट : 17 साल बाद फैसला, सभी 7 आरोपी बरी

    जांच में लापरवाही और सबूतों की कमी
    मुंबई.
    महाराष्ट्र के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए बम धमाके के मामले में 17 साल बाद आया फैसला ऐतिहासिक है। मुंबई स्थित विशेष एनआईए अदालत ने गुरुवार को पूर्व भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित सहित सभी सात आरोपियों को बरी कर दिया। अदालत ने अपने फैसले में जांच में लापरवाही और सबूतों की कमी पर जोर दिया, यह कहते हुए कि संदेह के आधार पर किसी को सजा नहीं दी जा सकती। यह फैसला उन सभी के लिए एक बड़ी राहत है जिन्होंने वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ी।

    प्रज्ञा ठाकुर को लेकर यह कहा
    न्यायाधीश ए.के. लाहोटी ने स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष “ठोस साक्ष्य” पेश करने में विफल रहा। विशेष रूप से, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ आरोपों को लेकर अदालत ने पाया कि यह साबित नहीं हो सका कि जिस बाइक पर बम लगाया गया था, वह उनकी थी। फॉरेंसिक विशेषज्ञों की चेसिस नंबर को पूरी तरह से रिकवर न कर पाने की असमर्थता ने अभियोजन के दावे को कमजोर कर दिया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने इस बात पर भी ध्यान दिया कि प्रज्ञा सिंह ठाकुर धमाके से दो साल पहले ही संन्यास ले चुकी थीं और उन्होंने अपनी सभी भौतिक वस्तुएं त्याग दी थीं।

    300 से अधिक गवाहों का परीक्षण
    लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के मामले में भी अदालत ने आरडीएक्स मंगवाने या बम तैयार करने के संबंध में कोई ठोस सबूत नहीं पाया। इस पूरे मामले में 300 से अधिक गवाहों का परीक्षण किया गया, जिनमें से 40 से अधिक अपने बयान से मुकर गए, जो जांच की दिशा और गुणवत्ता पर सवाल खड़ा करता है। यह फैसला महाराष्ट्र एटीएस के प्रमुख हेमंत करकरे की शहादत के बाद एनआईए को सौंपे गए इस संवेदनशील मामले की लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया का अंत है।