Tag: बॉम्बे हाई कोर्ट

  • 10 मंजिला 11 बिल्डिंगों पर चलेगा बुलडोजर

    10 मंजिला 11 बिल्डिंगों पर चलेगा बुलडोजर

    2019 में बनीं थीं इमारतें, रहता है करीब 345 परिवार
    मुंबई.
    बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिवा शील की और 11 अनधिकृत इमारतों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश ठाणे मनपा प्रशासन को दिया है। इसमें एक स्कूल भी शामिल है। मनपा ने 3 इमारतों को जमींदोज कर दिया है। सुभद्रा टकले की तरफ से दिवा शील में हुए अवैध इमारतों को लेकर दायर याचिका की सुनवाई पर हाई कोर्ट ने 12 जून को सख्त रुख अपनाते हुए मनपा आयुक्त को खुद दिवा जाकर कोर्ट की तरफ से नियुक्त अधिकारी की मौजूदगी में 17 अवैध इमारतों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था। इसके बाद दूसरे दिन से ही तोड़ने की कार्रवाई शुरू की गई थी। इस कार्रवाई के बाद कोर्ट ने एक अन्य याचिका की सुनवाई के बाद 4 और इमारतों को तोड़ने का आदेश दिया था। इस तरह सभी 21 के खिलाफ मनपा की ओर से तोड़ने की कार्रवाई की गई थी। पिछले हफ्ते फिरोज खान और चंद्राबाई अलिमकर की याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने और 11 इमारतों को तोड़ने का आदेश मनपा प्रशासन को दिया।

    11 में तीन गिराई गईं
    इस बारे में एक अधिकारी ने बताया कि 11 में से 3 को जमींदोज किया गया है। शेष इमारतों में रहने वालों को नोटिस दिए गए हैं। खाली होते ही उन्हें भी गिरा दिया जाएगा। जिन 11 इमारतों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश जारी हुआ है, वे 2018 से 2019 के बीच बनी थीं। ये इमारतें 3 से 10 मंजिला हैं। बिल्डर और जमीन मालिक दोनों रिश्तेदार हैं और उनके बीच का विवाद कोर्ट में चला रहा था। इन इमारतों में करीब 345 परिवार रहते हैं। अवैध इमारत की एक मंजिल पर स्कूल भी चल रहा था। स्कूल को खाली करा लिया गया है। शिक्षा विभाग स्कूल के विद्यार्थियों को दूसरे स्कूलों में समायोजित करने की कार्रवाई कर रहा है।

  • जिन्ना हाउस विरासत, तो ‘सावरकर सदन’ क्यों नहीं

    जिन्ना हाउस विरासत, तो ‘सावरकर सदन’ क्यों नहीं

    बॉम्बे हाईकोर्ट ने फडणवीस सरकार से मांगा जवाब
    मुंबई.
    बॉम्बे हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार को मध्य मुंबई के दादर स्थित सावरकर सदन को धरोहर का दर्जा देने के मुद्दे पर रुख स्पष्ट करने का निर्देश दिया है। इससे पहले मुंबई धरोहर संरक्षण समिति ने इस संरचना को धरोहर का दर्जा देने की सिफारिश की थी। इसके बाद बृहन्मुंबई महानगर पालिका ने दर्जा देने के लिए सरकार को पत्र लिखा था, हालांकि अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है।

    छह अगस्त को अगली सुनवाई
    बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आलोक अराधे और न्यायमूर्ति संदीप मार्ने की पीठ को एक सरकारी वकील ने सूचित किया कि समिति को एक नई सिफारिश करनी होगी। इसके बाद अदालत ने इसके पीछे के कारण पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा, “पहले की सिफ़ारिश में क्या दिक्कत है? समिति ने सिफ़ारिश की थी, इसलिए बीएमसी ने आपको (सरकार को) पत्र लिखकर इसे ग्रेड दो धरोहर संरचना घोषित करने के लिए कहा।” पीठ ने सरकार और बीएमसी को अपने हलफ़नामे दाखिल करने को कहा और मामले की अगली सुनवाई छह अगस्त के लिए निर्धारित कर दी।

    यह अनुरोध किया है
    पंकज के. फडनीस के नेतृत्व वाले एक हिंदू संगठन, अभिनव भारत कांग्रेस द्वारा दायर एक जनहित याचिका में इस इमारत के लिए धरोहर संरक्षण का अनुरोध किया गया था। दादर के शिवाजी पार्क क्षेत्र में स्थित सावरकर सदन कभी हिंदुत्व विचारक विनायक दामोदर सावरकर का निवास स्थान हुआ करता था। इस जनहित याचिका में राज्य सरकार से 2012 में इस इमारत को मुंबई की आधिकारिक धरोहर सूची में शामिल करने की सिफ़ारिश पर कार्रवाई करने का आग्रह किया गया था। याचिकाकर्ता ने इस बात पर ज़ोर दिया कि सिफ़ारिश के बावजूद, शहरी विकास विभाग एक दशक से भी ज़्यादा समय से कोई कार्रवाई करने में विफल रहा है। याचिका में केंद्र सरकार से सावरकर सदन को ‘राष्ट्रीय महत्व का स्मारक’ घोषित करने पर विचार करने का भी आग्रह किया गया, हालांकि मौजूदा मानदंडों के तहत इसकी आयु 100 वर्ष से कम है। जिन्ना हाउस से तुलना करते हुए, याचिकाकर्ता ने सवाल किया कि सावरकर सदन को इसी तरह की मान्यता क्यों नहीं दी गई। जिन्ना हाउस को संरक्षित धरोहर का दर्जा प्राप्त है। अब देखना है कि बॉम्बे हाईकोर्ट के निर्देश पर सीएम देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली महायुति सरकार क्या फैसला लेती है।

  • मृतक के सीमेन को सुरक्षित रखें

    मृतक के सीमेन को सुरक्षित रखें

    एक मां की याचिका पर बॉम्बे हाई कोर्ट ने दिया आदेश
    मुंबई.
    बॉम्बे हाई कोर्ट ने मां की याचिका पर उसके मृत बेटे के सीमेन (वीर्य) को सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह आदेश एक प्रजनन केंद्र को एक मृत अविवाहित व्यक्ति के जमे हुए वीर्य को सुरक्षित रखने का आदेश दिया है। कोर्ट ने यह आदेश मृत युवक की मां की याचिका पर दिया है। मां अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए इस वीर्य का इस्तेमाल करना चाहती है। प्रजनन केंद्र ने उसे वीर्य देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मां ने अदालत का रुख किया था।

    कब सुरक्षित कराया था वीर्य?
    महिला के बेटे ने कीमोथेरेपी के दौरान अपने वीर्य को सुरक्षित रखने का विकल्प चुना था। जस्टिस मनीष पिटाले ने कहा कि अगर मामले के निर्णय से पहले वीर्य के नमूने को नष्ट कर दिया जाता है, तो याचिका का उद्देश्य निराशाजनक होगा। मां की याचिका में कहा गया है कि जब उसके बेटे को कैंसर का पता चला, तो उसका इलाज कर रहे ऑन्कोलॉजिस्ट ने उसे अपने वीर्य को फ्रीज करने की सलाह दी थी, क्योंकि कीमोथेरेपी से प्रजनन संबंधी समस्याएं हो रही थीं। हालांकि उसके बेटे ने परिवार के सदस्यों से परामर्श किए बिना ही अपनी मृत्यु की स्थिति में नमूने को नष्ट करने का विकल्प चुना। 16 फरवरी को उसकी मृत्यु हो गई।

    कब क्या हुआ?
    24 और 26 फरवरी को महिला ने नोवा आईवीएफ फर्टिलिटी सेंटर को ईमेल भेजकर अनुरोध किया कि वे वीर्य के नमूने का निपटान न करें। नमूने को भविष्य में इस्तेमाल के लिए गुजरात स्थित आईवीएफ सेंटर में स्थानांतरित करने की सुविधा प्रदान करें। 27 फरवरी को नोवा ने नमूना जारी करने से इनकार कर दिया। मां से सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम और नियमों के अनुसार अदालत से प्राधिकरण प्राप्त करने की बात कही। 1 अप्रैल को महाराष्ट्र के सार्वजनिक स्वास्थ्य सचिव ने उन्हें राष्ट्रीय बोर्ड से संपर्क करने के लिए लिखा। 6 मई को केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने उनके अनुरोध को अस्वीकार कर दिया। इसके बाद मां ने हाईकोर्ट का रुख किया।

    31 जुलाई है लास्ट डेट
    मृत युवक के वीर्य के नमूने को 31 जुलाई तक संग्रहीत किया जाना है। अधिवक्ता निखिलेश पोटे और तन्मय जाधव के माध्यम से प्रस्तुत की गई उनकी याचिका में कहा गया है कि युवक के परिवार में केवल महिला रिश्तेदार हैं। उनके पिता की मृत्यु 45 वर्ष की आयु में और उनके चाचा की 21 वर्ष की आयु में हुई। अब याचिकाकर्ता ने 21 वर्ष की कम आयु में इसे खो दिया है। याचिकाकर्ता मृतक बेटे के वीर्य के माध्यम से परिवार की विरासत को आगे बढ़ाने का इरादा रखता है। इसमें कहा गया है कि जब उसका बेटा गंभीर स्थिति में था और उसे लगा कि उसके पास ज्यादा समय नहीं है, तो उसने अपनी चाची से कहा कि उसके शुक्राणु के साथ कुछ करो और उसके बच्चे पैदा करो, जो मेरी मां और परिवार की देखभाल करेंगे।

    बेटे के सामने थे दो विकल्प
    कानूनी तौर पर शुक्राणु को हासिल करने का अधिकार मृतक के माता-पिता को है। वे कानूनी उत्तराधिकारी हैं। इस पूरे मामले में सामने आया है कि इसमें कहा गया है कि मृतक युवक द्वारा हस्ताक्षरित फॉर्म में दो कॉलम थे। पहला नमूने को नष्ट करना या पत्नी को सौंपना (यदि विवाहित है)। याचिकाकर्ता का मृतक बेटा अविवाहित था। ऐसा माना जा रहा है कि ऐसे में उसने ‘नष्ट’ विकल्प चुना होगा। बॉम्बे हाई कोर्ट के जस्टिस पिटाले ने कहा कि याचिका मृत्यु के बाद किसी व्यक्ति के वीर्य/स्पर्म को संरक्षित करने के तरीके के संबंध में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। इस मामले में अभी आगे सुनवाई होगी। तब तक आईवीएफ सेंटर को स्पर्म का सैंपल सुरक्षित रखना होगा।