राकांपा नेता सलिल देशमुख ने उठाई आवाज, मुंबई में कृषिमंत्री कोकाटे को निवेदन सौंपा
मुंबई.
खाद पर लिंकिंग रोकने और बोगस बीज की बिक्री रोकने की मांग किसानों के हितों की रक्षा के लिए उठाई गई है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि किसानों को सही गुणवत्ता वाले कृषि उत्पाद (खाद और बीज) उचित मूल्य पर मिलें और उन्हें किसी भी तरह के शोषण या धोखाधड़ी से बचाया जा सके। राकांपा नेता सलिल देशमुख ने मुंबई में कृषिमंत्री माणिकराव कोकाटे से भेंट कर इस बारे में निवेदन सौंपा है। उन्होंने निवेदन पत्र में लिखा है कि किसान खाद व बीज खरीदने की तैयारी में हैं, लेकिन बाजार में मांग के अनुरूप खाद उपलब्ध नहीं है। इसका लाभ लेकर खाद कंपनी लिंकिंग करके बाजार में खाद बिक्री के लिए लाने की तैयारी में है। किसानों की लूट का प्रयास किया जा रहा है।
किसानों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ
लिंकिंग का अर्थ है कि जब किसान को एक विशेष प्रकार की खाद (जैसे यूरिया) खरीदनी होती है, तो उसे उसके साथ कोई अन्य उत्पाद (जैसे कोई कम बिकने वाला उर्वरक या कीटनाशक) भी खरीदने के लिए मजबूर किया जाता है। यह अक्सर विक्रेताओं द्वारा अपनी बिक्री बढ़ाने या स्टॉक क्लियर करने के लिए किया जाता है। किसानों को उन उत्पादों के लिए भुगतान करना पड़ता है, जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं होती है या जो उनके लिए उपयोगी नहीं होते हैं। यह किसानों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ डालता है, खासकर छोटे और सीमांत किसानों पर। कई बार, लिंकिंग के तहत बेचे जाने वाले अतिरिक्त उत्पाद घटिया गुणवत्ता के हो सकते हैं और किसानों के पास अपनी पसंद के उत्पाद चुनने का विकल्प नहीं बचता है।
नागपुर जिले में डीएपी खाद की रैक नहीं पहुंची
देशमुख ने कहा है कि किसानों को जिन डीएपी खाद की अधिक जरुरत रहती है वह खाद ही बाजार में उपलब्ध नहीं है। नागपुर जिले में डीएपी खाद की एक भी रैक नहीं पहुंची है। ईफको व गोदावरी कंपनी के डीएपी की मांग किसान करते हैं। इसका फायदा लेकर कंपनियों की ओर से दुकानदार को कहा जा रहा है कि 200 बैग डीएपी के साथ 100 बैग सलफर लें। लेकिन लिंकिंग खाद की बिक्री पर दुकानदार को दोषी ठहराकर कार्रवाई की जाती है। दूसरी ओर बोगस बीज बिक्री के मामले बड़े पैमाने पर सामने आ रहे हैं। शिकायतों के बाद भी बोगस बीज की बिक्री बाजार में जारी है।
बोगस बीज नहीं बिकने देने की मांग
बोगस बीज का अर्थ है नकली, घटिया गुणवत्ता वाले, या अमानक बीज। ये बीज या तो अंकुरित नहीं होते हैं, या यदि अंकुरित होते भी हैं तो उनसे स्वस्थ फसल नहीं मिलती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है। बोगस बीजों के कारण पूरी फसल बर्बाद हो सकती है, जिससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान होता है। किसान का समय, श्रम और अन्य निवेश (जैसे खाद, पानी) भी व्यर्थ हो जाता है। यदि फसल किसी तरह उग भी जाती है, तो उसकी उत्पादकता और गुणवत्ता बुरी तरह प्रभावित होती है। फसल खराब होने से किसान कर्ज में डूब सकते हैं और उनके सामने गंभीर आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है।