जस्टिस ओका अंतिम दिन भी करते रहे काम, एक दिन पहले ही हुई मां की मौत
नई दिल्ली.
न्यायमूर्ति ए.एस. ओका ने सुप्रीम कोर्ट में अपने अंतिम कार्य दिवस पर 11 फैसले सुनाकर न्याय के प्रति अपने समर्पण का परिचय दिया। उन्होंने यह कार्य अपनी मां के निधन के अगले दिन किया, परंपराओं को तोड़ते हुए आखिरी दिन भी कोर्ट में काम किया। उन्होंने ‘सेवानिवृत्ति’ शब्द को नकारते हुए न्यायिक सेवा को जीवनभर का कर्तव्य माना। उनकी न्यायिक यात्रा, निष्ठा और सेवा भाव आने वाले न्यायाधीशों के लिए प्रेरणास्रोत हैं।
कर्तव्य को प्राथमिकता दी
भारत के सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एएस ओका ने अपने अंतिम कार्य दिवस को भी पूरी निष्ठा और कर्तव्य के साथ बिताया। शुक्रवार 23 मई को उन्होंने कुल 11 मामलों में फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि उन्होंने ये फैसले अपनी माता के निधन के एक दिन बाद सुनाए। शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में फैसले सुनाने के बाद वे अपनी मां के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए मुंबई रवाना हो गए। यह संवेदनशील परिस्थिति होने के बावजूद उन्होंने पहले अपने कर्तव्य को प्राथमिकता दी।
परंपरा को चुनौती देने वाला निर्णय
ज्यादातर न्यायाधीश अपने अंतिम दिन कोर्ट में काम नहीं करते, लेकिन जस्टिस ओका इस परंपरा से सहमत नहीं हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि वे इस चलन को नहीं मानते और अपने आखिरी दिन भी नियमित पीठ में बैठकर निर्णय सुनाना चाहते हैं। उन्होंने कहा, “सुप्रीम कोर्ट में यह परंपरा है कि रिटायर होने वाले जज आखिरी दिन बेंच में नहीं बैठते, लेकिन मैं इस सोच से सहमत नहीं हूं। मुझे खुशी है कि मैंने आखिरी दिन भी फैसले सुनाए।” उनका यह दृष्टिकोण न्याय व्यवस्था के प्रति उनकी निष्ठा और कर्मठता को दर्शाता है।
सेवानिवृत्ति शब्द से असहमति
जस्टिस ओका ने ‘सेवानिवृत्ति’ शब्द से असहमति जताते हुए कहा कि यह शब्द उन्हें पसंद नहीं। उन्होंने जनवरी 2025 तक जितने अधिकतम मामलों की सुनवाई संभव हो सके, उतनी सुनवाई करने का निर्णय पहले ही ले लिया था। उनका यह नजरिया बताता है कि वे सेवा को केवल कार्यकाल तक सीमित नहीं मानते।
न्यायिक यात्रा की शुरुआत
25 मई 1960 को जन्मे न्यायमूर्ति अभय श्रीनिवास ओका ने 1985 में बॉम्बे हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीपी टिपनिस के चैंबर से अपने विधिक करियर की शुरुआत की। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की थी। साल 2003 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 2005 में वे स्थायी न्यायाधीश बने। इसके बाद 2019 में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया, जहां से 2021 में उन्हें भारत के सर्वोच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया।
सम्मान और प्रतिबद्धता का संगम
इस सप्ताह की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन द्वारा जस्टिस ओका को सम्मानित किया गया था। इस कार्यक्रम में उन्होंने फिर दोहराया कि काम के प्रति समर्पण ही उनका सबसे बड़ा मूल्य रहा है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि वे कभी पीछे मुड़कर नहीं देखते और हर फैसले को पूरी सोच और ईमानदारी से लेते हैं।
प्रेरणा देने वाली न्यायिक सेवा
न्यायमूर्ति एएस ओका का कार्यकाल भारतीय न्यायपालिका में उस समर्पण का उदाहरण है, जो किसी भी न्यायाधीश को केवल कानून का ज्ञाता ही नहीं, बल्कि समाज का मार्गदर्शक भी बनाता है। उनके निर्णय और कार्यशैली आने वाले न्यायाधीशों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।