हमारा WH वेब न्यूज़ चैंनल है। आम जनता की समस्याओं पर प्रकाश डालने का कार्य करता है। हर तबको की खबरें प्रमुखता से प्रकाशित करने का दायित्व निभाते। देश की एकता अखण्डता रखने के लिए हर प्रयास करते है। किसान,बेरोजगारी,शिक्षा,व्यापार,की ख़बर प्रमुखतासे दिखाने प्रयास करते है। किसी भी जाती धर्म की भावनाओं को ठेच पहुँचानी वाली खबरों से हम दूर रहते है। देश की एकता ,अखंडता को हम हमेशा कायम रखने के लिए कार्य करेंगे। तो हमारे WH News को भारी मात्रा में सब्स्क्राइब कर हमें प्रोत्साहित करें।

जस्टिस वर्मा की करतूत सार्वजनिक, न्यायिक कार्य पर रोक

spot_img

– सुप्रीम कोर्ट ने सबूतों को अपलोड किया
नई दिल्ली.
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर लगी आग में जले नोटों के बंडलों की तस्वीर और वीडियो शनिवार को सामने आ गए। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस और फायर ब्रिगेड से मिले सबूतों को अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक किया। दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय की रिपोर्ट और जस्टिस वर्मा के जवाब मिलने के बाद देश के प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों की आंतरिक जांच के लिए शनिवार को तीन सदस्यीय समिति गठित कर दी और उन्हें न्यायिक कार्य से रोक दिया गया।
आंकड़े की आधिकारिक पुष्टि नहीं
जस्टिस यशवंत वर्मा के आधिकारिक आवास में 14 मार्च को आग लगने के बाद एक कमरे में कथित तौर पर बड़ी संख्या में नकदी पाए जाने की खबर सामने आने के बाद शुक्रवार को न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार की चर्चा सुर्खियों में आ गई थी। प्रारंभिक रिपोर्टों में यह रकम 15 करोड़ रुपए बताई गई है, हालांकि, इस आंकड़े की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने बुलाई थी बैठक
इससे पहले, गुरुवार को कथित रूप से बेहिसाब नकदी मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने एक बैठक बुलाई थी और दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस उपाध्याय को जस्टिस वर्मा के खिलाफ आरोपों के संबंध में एक रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा गया था। रिपोर्ट 21 मार्च को सौंप दी गई थी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को स्पष्ट किया कि जस्टिस वर्मा का तबादला उनकी मूल अदालत इलाहाबाद हाई कोर्ट में करने के निर्णय उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से अलग है।
चीनी मिल घपले में भी आया था नाम
इस बीच यह भी पता चला कि फरवरी 2018 में केंद्रीय जांच ब्यूरो ने जस्टिस वर्मा को सिंभावली चीनी मिल धोखाधड़ी मामले में एक आरोपी के रूप में नामित किया था, जिसमें 97.85 करोड़ रुपए के ऋण की हेराफेरी हुई थी। जस्टिस वर्मा उस समय कंपनी के गैर-कार्यकारी निदेशक थे। हालांकि सीबीआई ने जांच शुरू की, लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। बाद में जांच को फिर से शुरू करने के एक अदालती आदेश को 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया, जिससे जांच प्रभावी रूप से समाप्त हो गई।